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Information About Chipko Movement History in Hindi

चिपको आन्दोलन की सम्पूर्ण जानकारी !

आज के इस लेख में आपको एक बहुत ही जरूरी विषय पर जानकारी मिलने वाली है| आज यहाँ आपको चिपको आन्दोलन क्या है अथवा इससे जुडी सभी चीजे आपको जानने को मिलेगी.

आठवि कक्षा में आते-आते एक बच्चा कई आंदोलन के बारे में अपने इतिहास की किताब में पढ़ लेता है, उन्ही आंदोलन में से एक है चिपको आन्दोलन.

आज के इस लेख को पढ़ने से पहले मेरे लिए यह जानना अति आवश्यक है कि आप चिपको आन्दोलन के बारे में क्या समझते हो ? तो दोस्तो आपको इसके बारे में जो भी पता है उसको आप कमेंट बॉक्स में लिख कर मुझे बता सकते हैं.

यदि आज से पहले आपने कभी चिपको आंदोलन या (Chipko movement) के बारे में कभी कुछ इंटरनेट पर सर्च किया होगा तो यकीनन ही आपको तस्वीरों में कुछ लोग पेड़ो से चिपके हुए दिखे होंगे.

आइए दोस्तो जानते हैं कि आखिर किस वजह से वो लोग पेड़ से चिपक के खड़े हुए थे और पेड़ से चिपकना एक आंदोलन में तब्दील कब और क्यों हुआ ? तो चलिये शुरू करते हैं:-

चिपको आन्दोलन हिस्ट्री – What is Chipko Movement in Hindi

चिपको आन्दोलन एक पर्यावरण-रक्षा का आन्दोलन है, यह भारत के उत्तराखण्ड राज्य (उस वक्त वह उत्तर प्रदेश का ही भाग था) में किसानो ने वृक्षों की कटाई का विरोध करने के लिए किया था.

वे राज्य  (उत्तर प्रदेश) के वन विभाग के ठेकेदारों द्वारा वनों की कटाई का विरोध कर रहे थे और इस वजह से वह पेड़ में चिपक के खड़े हो गए थे और उन पर अपना परम्परागत अधिकार जता रहे थे.

दोस्तो जिस स्पीड में पेड़ो और वनो को समाप्त किया जा रहा है मुझे लगता है की अब हमे इस आंदोलन से कही फिर से न करने कि जरूरत पड़ जाए.

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मै मजाक नहीं कर रहा हूँ, आप चाहे तो इस विषय पर अपने कमेंट मेरे साथ शेयर कर सकते हैं|

आइए इस घटना को होते हुए जरा करीब से देखते एवं महसूस करते हैं, आखिर क्या बीती होगी उन लोगो पर एक बार महसूस कर के देखते हैं-

Chipko Movement History in Hindi – चिपको आन्दोलन का इतिहास

चिपको आन्दोलन का इतिहास

दोस्तो, चिपको आंदोलन के पीछे एक पारिस्थितिक और आर्थिक पृष्ठभूमि है, जिस भूमि में यह आंदोलन उपजा वह 1970 में आई भयंकर बाढ़ का अनुभव कर चुका था।

इस बाढ़ से करीवन 400 कि०मी० दूर तक का इलाका ध्वस्त हो गया तथा पांच बढ़े पुल, हजारों मवेशी, लाखों रूपये की लकडी व ईंधन बहकर नष्ट हो गयी.

अलकनंदा की इस त्रासदी ने ग्रामवासियों के मन पर एक अमिट छाप छोड़ी थी और उन्हें पता था कि लोगों के जीवन में वनों की कितनी महत्वपूर्ण भूमिका होती है.

स्वतंत्र भारत के वन-नियम कानूनों ने भी औपनिवेशिक परम्परा का ही निर्वाह किया है, वनों के नजदीक रहने वाले लोगों कोवन-सम्पदा के माध्यम से सम्मानजनक रोजगार देने के उद्देश्य से कुछ पहाड़ी नौजवानों ने 1962 में चमोली जिले के मुख्यालय गोपेश्वर में दशौली ग्राम स्वराज्य संघ बनाया था.

उत्तर प्रदेश के वन विभाग ने संस्था के काष्ठ-कला केंद्र को सन् 1972-73 के लिए अंगु के पेड़ देने से इंकार कर दिया था| पहले ये पेड़ नजदीक रहने वाले ग्रामीणों को मिला करते थे.

गांव वाले इस हल्की लेकिन बेहद मजबूत लकडी से अपनी जरूरत के मुताबिक खेती-बाड़ी के औजार बनाते थे|

गांवों के लिए यह लकड़ी बहुत जरूरी थी क्यूंकी पहाडी खेती में बैल का जुआ सिर्फ इसी लकड़ी से बनाया जाता रहा है, इसके हल्केपन के कारण बैल थकता नहीं|

यह लकड़ी मौसम के मुताबिक न तो ठण्डी होती है, न गरम, इसलिए कभी फटती नहीं है और अपनी मजबूती के कारण बरसों तक टिकी रहती है|

इसी बीच पता चला कि वन विभाग ने खेल-कूद का सामान बनाने वाली इलाहाबाद की साइमंड कम्पनी का गोपेश्वर से एक किलोमीटर दूर मण्डल नाम के वन से अंगू के पेड़ काटने की इजाजत दे दी है.

वे तो केवल इतना ही चाहते थे कि पहले खेत की जरूरतें पूरी की जाये और फिर खेल की|

इस जायज मांग के साथ इनकी एक छोटी-सी मांग और भी थी कि वनवासियों को वन संपदा से किसी-न-किसी किस्म का रोजगार जरूर मिलना चाहिए ताकि वनों की सुरक्षा के प्रति उनका प्रेम बना रह सके.

चिपको आन्दोलन का मूल केंद्ररेनी गांव (जिला चमोली) था जो भारत-तिब्बत सीमा पर जोशीमठ से लगभग 22 किलोमीटर दूर ऋषिगंगा और विष्णु गंगा के संगम पर बसा है|

वन विभाग ने इस क्षेत्र के अंगू के 2451 पेड़ साइमंड कंपनी को ठेके पर दिये थे|

इसकी खबर मिलते ही चंडी प्रसाद भट्ट के नेतृत्व में 14 फरवरी, 1974 को एक सभा की गई जिसमें लोगों को चेताया गया कि यदि पेड़ गिराये गये, तो हमारा अस्तित्व खतरे में पड जायेगा|

ये पेड़ न सिर्फ हमारी चारे, जलावन और जड़ी-बूटियों की जरूरते पूरी करते है, बल्कि मिट्टी का क्षरण भी रोकते है|

चिपको आन्दोलन का घोषवाक्य है – चिपको आन्दोलन की पूरी जानकारी

क्या हैं जंगल के उपकार, मिट्टी, पानी और बयार।
मिट्टी, पानी और बयार, जिन्दा रहने के आधार।

चिपको आन्दोलन के संस्थापक कौन थे – चिपको आंदोलन की शुरुआत किसने की ?

इस सभा के बाद 15 मार्च को गांव वालों ने रेनी जंगल की कटाई के विरोध में जुलूस निकाला|

जब आंदोलन जोर पकडने लगा ठीक तभी सरकार ने घोषणा की कि चमोली में सेना के लिए जिन लोगों के खेतों को अधिग्रहण किया गया था,
वे अपना मुआवजा ले जाएं.

गांव के पुरूष मुआवजा लेने चमोली चले गए, दूसरी ओर सरकार ने आंदोलनकारियों को बातचीत के लिए जिला मुख्यालय, गोपेश्वर बुला लिया| इस मौके का लाभ उठाते हुए ठेकेदार और वन अधिकारी जंगल में घुस गये.

अब गांव में सिर्फ महिलायें ही बची थीं, लेकिन उन्होंने हिम्मत नहीं हारी| बिना जान की परवाह किये 27 औरतों ने श्रीमती गौरा देवी के नेतृत्व में चिपको आन्दोलन शुरू कर दिया| जी हाँ दोस्तो वो औरते ही थे जिन्होंने चिपको आन्दोलन का विचार दिया.

महिलाओं ने कुल्हाड़ी लेकर आये ठेकेदारों को यह कह कर जंगल से भगा दिया कि यह जंगल हमारा मायका है, और हम इसे कटने नहीं देंगे.

मायका महिलाओं के लिए वह सुखद स्थान है जहाँ संकट के समय उन्हें आश्रय मिलता है|

चिपको आंदोलन के दौरान महिलाओं का तर्क था कि वह औरत ही है जो ईंधन, चारे, पानी आदि को एकत्रित करती हैं| उसके लिए जंगल का प्रश्न उसकी जीवन-मृत्यु का प्रश्न है.

अत: वनों से संबंधित किसी भी निर्णय में उनकी राय को शामिल करनी चाहिए| चिपको आंदोलन ने वंदना शिवा को विकास के एक नये सिधांत – ‘पर्यावरण नारीवाद’ के लिए प्रेरणा दी, जिसमें पर्यावरण तथा नारी के बीच अटूट संबंधों को दर्शाया गया है.

इस प्रकार 26 मार्च, 1974 को स्वतंत्र भारत के प्रथम पर्यावरण आंदोलन की नींव रखी गई.

सन् 1987 में इस आन्दोलन को सम्यक जीविका पुरस्कार (Right Livelihood Award) से सम्मानित भी किया गया था|

तो दोस्तो चिपको आन्दोलन से जुड़ा यह लेख यही पर समाप्त हो रहा है, आप इसे कहानी के रूप में अपने बच्चो को सूना कर उनको याद भी करा सकते हैं.

आशा करता हूँ की इस लेख के माध्यम से आपको चिपको आन्दोलन से जुड़ी विशेष जानकारी प्राप्त हुई होगी और अब आप चाहे तो इस लेख को अपने दोस्तो के साथ सोश्ल मीडिया के माध्यम से शेयर भी कर सकते हैं.

सामान्य ज्ञान

प्रश्न : चिपको आन्दोलन के जनक कौन है ?
उत्तर : सुंदरलाल बहुगुणा

प्रश्न : चिपको आंदोलन की शुरुआत कब हुई ?
उत्तर : इस आंदोलन की शुरुआत उत्तराखंड के चमोली जिले में 26 मार्च, 1974 में हुई थी|

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भारत का प्राचीन इतिहास ⇓

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