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प्रेरणात्मक कहानी इन हिंदी

एक ऐसी प्रेरणात्मक कहानी जो बदल देगी आपकी जिंदगी!

आज मै आपके लिए एक ऐसी प्रेरणात्मक कहानी लेकर आया हूँ जिसको पढ़ने के बाद आप अपनी किस्मत को कोसना छोड़ दोगे और आपके अंदर एक नई उम्मीद की किरण जागेगी.

प्रिय दोस्तों मेरा नाम हिमांशु ग्रेवाल है और आज में आपको ये कहानी बताकर आपको आपके लक्ष्य के लिए मोटीवेट करना चाहता हूँ.

मै आपको एकलव्य की कहानी का उदाहरण देना चाहता हूँ!

आप सब जानते ही होंगे की एकलव्य ने गुरु दक्षिणा में अपना अंगूठा भी काट कर दे दिया था परन्तु फिर भी अपने लक्ष्य से नहीं भटके और प्रयास करते रहे.

आप सब भी ऐसे ही जीवन में प्रयास करते रहीये एक बार नहीं बार बार करते रहिये ताकि आपका लक्ष्य खुद आपके कदमो में आकर रुक जाये.

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प्रेरणात्मक कहानी एकलव्य की!

कहानी को शुरू करने से पहले मै आपको एकलव्य का जीवन परिचय के बारे में बता देता हूँ| कोन थे एकलव्य जी.

यह कहानी महान धनुर्धर एकलव्य की है एकलव्य हिरण्य धनु का पुत्र था एकलव्य को धनुर्विद्या और गुरु भक्ति के लिए जाना जाता है उनके पिता की मृत्यु के बाद वे श्रंगवेर राज्य के शासक बने थे.

एकलव्य की कथा

महाभारत के अनुसार एकलव्य धनुर्विद्या सिखने के उदेश्य से गुरु द्रोणाचार्य के आश्रम गए थे.

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किन्तु निषाद पुत्र होने के कारण द्रोणाचार्य ने एकलव्य को अपना शिष्य के रूप में स्वीकार नहीं किया.

फिर एकलव्य निराश होकर वन में चले गए और वहा जाकर उन्होंने गुरु द्रोणाचार्य की एक मूर्ति बनाई और उस मूर्ति को ही अपना गुरु मानकर धनुर्विद्या का अभ्यास करने लगे.

एकाग्रता से साधना करते हुए वे अपनी धनुर्विद्या में निपुण हो गए एक दिन जब पांडव और कौरव राजकुमार गुरु द्रोणाचार्य के साथ वन में गए तो राजकुमार का कुत्ता भटक गया और भटकते हुए एकलव्य के आश्रम पहुंच गया.

वहा कुत्ता एकलव्य को देखकर भोकने लगा कुत्ते के भोकने से एकलव्य की साधना में विघ्न आ रहा था तो एकलव्य ने कुत्ते के मु को अपने बाणो से बंद कर दिया और बाण भी इस प्रकार चलाये की कुत्ते को ज़रा भी चोट न लगी.

फिर कुत्ता द्रोणाचार्य के पास वापस लोट गया और जब द्रोणाचार्य ने बाणो की वो अध्बुद्ध कला देखी तो वे आश्चर्य चकित रह गए की निपुण धनुधर है कौन!

वे जानना चाहते थे की धनुधर कौन है फिर वे एकलव्य के पास पहुंच गए तब उन्होंने देखा की यह तो वह निषाद पुत्र है जिसे उन्होंने शिष्य स्वीकारने से मना कर दिया था.

जब उन्होंने यह देखा की एकलव्य उनकी ही मूर्ति को गुरु मानकर स्वयं ही अभ्यास कर रहा है तब वे और चकित हो गए.

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एकलव्य का घनिष्ठ गुरु प्रेम (एकलव्य का अंगूठा)

एकलव्य द्रोणाचार्य शिष्य : फिर गुरु द्रोणाचार्य ने कहा यदि तुम हमे अपना गुरु मानते हो तो तुम्हे हमे गुरु दक्षिणा देनी होगी एकलव्य ने अपने प्राण तक देने की बात कर दी तब गुरु द्रोणाचार्य ने एकलव्य से उसका अंगूठा मांग लिया.

एकलव्य ने तभी अपना अंगूठा गुरु द्रोणाचार्य को समर्पित कर दिया.

गुरु ने क्यों माँगा दक्षिणा में अंगूठा ?

गुरु द्रोणाचार्य ने एकलव्य से उनका अंगूठा इसलिए माँगा था ताकि अर्जुन को महान योद्धा बनाने का उनका वचन झुटा न पड़ जाये.

परन्तु एकलव्य ने तब भी हार नहीं मानी वह अंगूठे के बिना ही अभ्यास करने लगा वह तर्जनी और माध्यम ऊँगली से तीर चलाने लगा और यही से तीर चलाने के आधुनिक तरिके का जन्म हुआ.

आज कल जो तीर अंदाजी की जाती है वो एकलव्य के आधुनिक तरिके से ही की जाती है उसके उपरांत एकलव्य फिर से अपने राज्य चले गए एकलव्य एकेले ही सेकड़ो योद्धाओ के समान थे वे बहुत निपुण थे.

विष्णु पुराण में उल्लेख है की एकलव्य का निषाद वंश का राजा बनने के बाद जरासंध की सेना पर आक्रमण कर उन्होंने जरासंध की सेना का सफाया ही कर दिया था.

श्री कृष्ण ने दी एकलव्य को वीरगति (एकलव्य की मृत्यु कैसे हुई)

श्रीकृष्ण ने किया था एकलव्य का वध : इसी बिच जब श्री कृष्णा ने भी देखा की महज चार उंगलियों से एकलव्य बाण चला रहे है तो इस दृश्य पर उन्हें भी विश्वास नहीं हुआ.

तब ही श्री कृष्णा ने छल से एकलव्य का वध कर दिया जब युद्ध के बाद सभी पांडव अपनी अपनी वीरता का भखान कर रहे थे तब श्री कृष्ण ने स्वयं ये बात कुबूली थी.

“मेने तुम्हारे प्रेम में क्या नहीं किया तुम इस संसार के श्रेष्ठ धनुधर बनो इसलिए मेने गुरु द्रोणाचार्य का वध करवाया महान पराक्रमी कर्ण को भी कमजोर किया और ना चाहते हुए भी एकलव्य को वीरगति दी ताकि तुम्हारे रस्ते में कोई बाधा ना बने”

शिक्षा

प्रिय दोस्तों अब बारी आती है शिक्षा लिखने की मतलब की इस प्रेरणात्मक कहानी को पढ़कर हमको क्या शिक्षा मिले वो जानने की!

मै चाहता तो मै शिक्षा लिख सकता था की इस प्रेरणात्मक कहानी को पढ़कर हमको क्या शिक्षा मिली, परन्तु में चाहता हूँ की आप खुद हमको बताओ की इस आत्मविश्वास वाली कहानी को पढ़कर आपने क्या सिखा?

आपने इस कहानी को पढ़कर क्या सिखा आप हमको नीचे दिए गये कमेंट बॉक्स में जाकर अपने विचार हम सब के साथ व्यक्त कर सकते हो.

जितने ज्यादा विचार कमेंट के जरिये हमारे पास आएंगे उतना ज्यादा हमे कुछ न कुछ सीखने को मिलेगा| तो अपने विचार हमारे साथ जरुर व्यक्त करें. धन्यवाद!

इनको भी जरुर पढ़े⇓ 🙂

दोस्तों मुझे उम्मीद है की आपको यह प्रेरणात्मक कहानी अत्यंत पसंद आई होगी और इस कहानी को आप सभी लोगो के साथ फेसबुक, ट्विटर, गूगल+ और व्हाट्सएप्प पर शेयर करोगे.

आपको यह कहानी केसी लगी हमको कमेंट करके जरुर बताये और इस कहानी को पढ़कर आपको क्या सिखने को मिला हमको बताना न भूले! 🙂

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4 Comments

  1. महाभारत के बारे में जो मैंने पढ़ा, सुना, देखा और जनता हूँ उसके अनुसार, जब दुर्योधन को एकलव्य के अद्भुत धनुर्कला का ज्ञान हुआ तब दुर्योधन एकलव्य के पास जाके उसे अपने पक्ष में आने की बात कहता है, और एकलव्य दुर्योधन के बातो में आके उसे वचन दे देता है, दुर्योधन निश्चित ही एकलव्य के कला का उपयोग आगे अपने स्वार्थ के कार्यो के लिए करता, और ये बात गुरु द्रोण को पता चल चूका था, ये भी एक कारन था जिस लिए एकलव्य का अंगूठा गुरु द्रोण को मांगना पड़ा ताकि ऐसे धनुर कला का उपयोग बुराइयों के तरफ से ना हो….

  2. इरादा अगर नेक और पक्का हो तो लक्ष्य निश्चित रूप से प्राप्त की जा सकती है।

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