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भारत की 15 ऐसी महिलाएं जिन्होंने तराशा भारतीय संविधान को !
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भारत की 15 ऐसी महिलाएं जिन्होंने तराशा भारतीय संविधान को !

आप सभी जानते होंगे की भारत का संविधान 26 जनवरी, 1950 ई को लागू हुआ| संविधान को बनाने में 2 वर्ष 11 माह 18 दिन का समय लगा.

संविधान सभा की प्रारूप समिति के अध्यक्ष डॉ. भीमराव अंबेडकर थे| इस तरह के बहुत से महत्वपूर्ण तथ्य भारतीय संविधान के बारे में आप सभी ने पढ़े होंगे| लेकिन क्या आप जानते है की हमारे संविधान बनाने में 15 महिलाओं की भूमिका काफी अहम थी.

चलिए आज हम आपको इन्ही 15 महिलाओं के बारे में बताने जा रहे है.

भारत की 15 ऐसी महिलाएँ जिन्होंने तराशा भारतीय संविधान को

1. अम्मू स्वामीनाथन

भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन और भारत की संविधान सभा की सदस्य अम्मु स्वामीनाथन या अम्मुक्ट्टी स्वामीनाथन एक भारतीय सामाजिक कार्यकर्ता और राजनीतिक कार्यकर्ता थी|

इनका जन्म 1894 को केरल के पालघाट जिले के अनाकारा में हिंदू परिवार में हुआ था|

जब भारतीय संविधान का निर्माण किया जा रहा था तो महिलाओं के अधिकारों की बात इन्होने जोर-शोर से उठाई थी| ये महात्मा गांधी जी की अनुयायी थी और कई अहिंसक आंदोलनों में इन्होने हिस्सा लिया था.

उन्होंने 1917 में मद्रास में एनी बेसेंट के साथ महिला भारत संघ का गठन किया। वह 1946 में मद्रास निर्वाचन क्षेत्र से संविधान सभा का हिस्सा बन गई.

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24 नवंबर, 1949 को संविधान के मसौदे को पारित करते समय चर्चा के दौरान अपने भाषण में अम्मु ने कहा|

“बाहर के लोग कह रहे हैं कि भारत ने अपनी महिलाओं के बराबर अधिकार नहीं दिए हैं| अब हम कह सकते हैं कि जब भारतीय लोग स्वयं अपने संविधान को तैयार करते हैं तो उन्होंने देश के हर दूसरे नागरिक के बराबर महिलाओं को अधिकार दिए हैं।”

वह 1952 में लोकसभा के लिए चुनी गयी और 1954 में राज्यसभा के लिए| उन्होंने भारत स्काउट्स एंड गाइड (1960-65) और सेंसर बोर्ड की भी अध्यक्षता की|

अम्मू स्वामीनाथन की मृत्यु 1978 को पलक्कड़ जिला में हुई|

2. दक्षिणी वेलायुद्ध

आप भारत की संविधान सभा में एकमात्र दलित महिला थीं। देश में पहली दलित महिला स्नातक भी थी। संसद में रहते हुए, उन्होंने विशेष रूप से अनुसूचित जाति के शिक्षा से संबंधित मामलों को उठाया|

इनका जन्म 1912 को कोचीन में बोल्गाटी द्वीप पर हुआ था| संविधान के निर्माण के दौरान इन्होने दलितों से जुड़ी कई समस्याओं की और ध्यान दिलाया था| जिसके बाद संविधान में दलितों के लिए विशेष स्थान दिया गया था.

1945 में, इनका कोचीन विधान परिषद में राज्य सरकार द्वारा नामित किया गया था। वह 1946 में संविधान सभा के लिए चुने जाने वाली पहली और एकमात्र दलित महिला थीं| दक्षिणी ने अनुसूचित जाति समुदाय से संबंधित कई मुद्दों पर बीआर अम्बेडकर के साथ पक्षपात किया था.

3. कमला चौधरी

लखनऊ के समृद्ध परिवार में पैदा हुई थी, इनको अपनी शिक्षा जारी रखने के लिए काफी संघर्ष करना पड़ा था|

1930 में गांधी जी द्वारा शुरू किये गये नागरिक अवज्ञा आंदोलन में सक्रिय भागीदार थी| वह एक लेखिका थी और महिलाओं के अधिकारों पर खुल कर अपनी बात रखती थीं.

70 के आखिरी दशकों में लोकसभा की सदस्य चुनी गयी | वह अपने पचासवें सत्र में अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के उपाध्यक्ष रही और सत्तर के उत्तरार्ध में लोकसभा के सदस्य के रूप में चुनी गई.

आप एक प्रसिद्ध कथा लेखक भी थी| उनकी कहानियां आमतौर पर महिलाओं की आंतरिक दुनिया या आधुनिक राष्ट्र के रूप में भारत के उद्भव से निपटाती थीं.

4. बेगम एजाज रसूल – भारत की संविधान सभा में एकमात्र मुस्लिम महिला कौन थी ?

इनकी शादी नवाब एयाज रसूल से हुई थी| वह संविधान सभा की एकमात्र मुस्लिम महिला सदस्य थी| इन्होने मुस्लिम आरक्षण के लिए आवाज उठाई और उनके हितो के लिए काम किया.

1950 में, भारत में मुस्लिम लीग भंग हो गया और बेगम एजाज रसूल कांग्रेस में शामिल हो गई|

वह 1952 में राज्य सभा के चुनी गई थी और 1969 से 1990 तक उत्तर प्रदेश विधानसभा की सदस्य रही। 1969 और 1971 के बीच, वह सामाजिक कल्याण और अल्पसंख्यक मंत्री रही| 2000 में, उन्हें सामाजिक कार्य में उनके योगदान के लिए पद्म भूषण से सम्मानित किया गया था.

5. दुर्गाबाई देशमुख की जीवनी

15 जुलाई 1909 को राजमुंदरी में पैदा हुआ था| बारह वर्ष की आयु में, उन्होंने गैर-सहभागिता आंदोलन में भाग लिया|

उन्होंने 1930 में बापू के नमक सत्याग्रह आंदोलन में भी भाग लिया था| उन्होंने भारतीय शिक्षा व्यवस्था से जुड़े मामलों में संविधान में अहम बातें जुड़वाई| वह शिक्षा और महिला से जुड़ी कई संस्थाओं से जुड़ी और उसकी अध्यक्षता भी की|

1936 में, उन्होंने आंध्र महिला सभा की स्थापना की, जो एक दशक के भीतर मद्रास शहर में शिक्षा और सामाजिक कल्याण का एक महान संस्थान बन गया।

वह केंद्रीय सामाजिक कल्याण बोर्ड, राष्ट्रीय शिक्षा परिषद और राष्ट्रीय समिति पर लड़कियों और महिलाओं की शिक्षा जैसे कई केंद्रीय संगठनों की अध्यक्ष थीं| उन्हें 1975 में पद्म विभूषण से भी नवाजा गया.

वह आंध्र एजुकेशनल सोसाइटी, नई दिल्ली से भी जुड़ी थीं| 1971 में भारत में साक्षरता के प्रचार में उनके उत्कृष्ट योगदान के लिए दुर्गाबाई को चौथे नेहरू साहित्यिक पुरस्कार से सम्मानित किया गया था.

6. हंसा मेहता

इनका जन्म 1897 में बड़ौदा के एक परिवार में हुआ| हंसा ने हैदराबाद में आयोजित ऑल इंडिया वुमेन कांफ्रेस के अपने प्रेसिडेंशियल एड्रेस में महिला के अधिकारों की बात की|

महिला अधिकारों की बात उन्होंने संविधान के निर्माण में भी कही जिसे प्रमुखता से सुना गया और संविधान में फेरबदल भी किया गया.

एक सुधारक और सामाजिक कार्यकर्ता होने के साथ-साथ वह एक शिक्षक और लेखक भी थीं| हंसा ने इंग्लैंड में पत्रकारिता और समाजशास्त्र का अध्ययन किया.

वह 1946 में ऑल इंडिया वुमन कांफ्रेंस की अध्यक्ष भी रहीं थीं| वह संविधान सभा की मौलिक अधिकारों की उप समिति की सदस्य थीं।

उन्‍हें संयुक्‍त राष्‍ट्र मानवाधिकार की सार्वभौमिक घोषणा में “ऑल मेन आर बॉर्न फ्री एंड इक्‍वल” को बदलकर “ऑल ह्यूमन बीइंग आर बॉर्न फ्री एंड इक्‍वल” करवाने के अभियान के लिए भी जाना जाता है.

उन्होंने गुजराती में बच्चों के लिए कई किताबें लिखीं और गुलिवर ट्रेवल्स समेत कई अंग्रेजी कहानियों का भी अनुवाद किया| वह 1926 में बॉम्बे स्कूल कमेटी के लिए चुनी गई.

हैदराबाद में आयोजित अखिल भारतीय महिला सम्मेलन में उनके राष्ट्रपति के संबोधन में, उन्होंने महिलाओं के अधिकारों का चार्टर प्रस्तावित किया| उन्होंने 1945 से 1960 तक भारत में विभिन्न पदों का आयोजन किया.

7. लीला राय

लीला रॉय का जन्म 1990 में आसाम के गोलपारा में हुआ था| वह महिला अधिकारों के लिए शुरू से ही आवाज उठाती रहीं| गांधी जी के साथ कई आंदोलनों में भाग लिया| 1937 में उन्होंने कांग्रेस पार्टी ज्वाइन की।

आप सुभाष चंद्र बोस द्वारा गठित महिला उपसमिती की सदस्य भी रहीं| जब 1940 में सुभाष चंद्र बोस जेल गए तब वह फॉरवार्ड ब्लॉक वीकली की संपादक भी बनीं.

देश छोड़ने से पहले नेताजी ने पार्टी का सारा कार्यभार लीला रॉय और उनके पति को सौंप दिया था| संविधान निर्माण में उनके महत्व को भुलाया नहीं जा सकता है.

उन्होंने 1921 में बेथ्यून कॉलेज से स्नातक की उपाधि प्राप्त की और सभी बंगाल महिला उत्पीड़न समिति की सहायक सचिव बनी और महिलाओं के अधिकारों की मांग के लिए मीटिंग की व्यवस्था की| 1923 में, उन्होंने दीपाली संघ की स्थापना की|

बाद में, 1926 में, डाकरी संघ, दक्का और कोलकाता में महिला छात्रों के एक संगठन की स्थापना की गई थी| इन्होने महिला सत्याग्रह संघ बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थीं, जिसने नमक कर आंदोलन में सक्रिय भूमिका निभाई|

वह जयश्री के एक पत्रिका के संपादक बनी| 1937 में, वह कांग्रेस में शामिल हो गईं और अगले वर्ष, बंगाल प्रांतीय कांग्रेस महिला संगठन की स्थापना की|

8. मालती चौधरी

मालती का जन्म 1904 में पूर्वी बंगाल में हुआ था| इन्होने गांधी जी के सत्याग्रह आंदोलन सहित कई आंदोलनों में भाग लिया। यह उड़ीसा से संविधान सभा में पहुंची| वह स्वतंत्रता सेनानी थी| महात्मा गांधी ने उनका नाम तूफानी रखा था.

1933 में उन्होंने उत्कल कांग्रेस समाजवादी कर्मी संघ का निर्माण किया| जिसे बाद में अखिल भारतीय कांग्रेस सोशलिस्ट पार्टी की उड़ीसा प्रांतीय शाखा के रूप में जाना जाने लगा.

1934 में गांधी की पदयात्रा में भी शामिल हुई। कमजोर समुदायों के विकास के लिए उन्होंने आवाज बुलंद की और संविधान निर्माण के दौरान गरीबो और कमजोर समुदाय का पक्ष भी लिया.

1921 में, 16 साल की उम्र में, मालती चौधरी को शांतिनिकेतन भेजा गया जहां उन्हें विश्व भारती में भर्ती कराया गया| उन्होंने नाबकृष्ण चौधरी से विवाह किया, जो बाद में ओडिशा के मुख्यमंत्री बने|

नमक सत्याग्रह के दौरान, मालाती चौधरी, उनके पति के साथ भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस में शामिल हो गई और आंदोलन में भाग लिया| उन्होंने सत्याग्रह के लिए अनुकूल वातावरण बनाने के लिए लोगों के साथ संवाद किया.

उन्होंने ओडिशा में कमजोर समुदायों के उत्थान के लिए बाजीरत छत्रवास जैसे कई संगठन स्थापित किए| उन्होंने इंदिरा गांधी द्वारा आपातकाल की घोषणा के खिलाफ विरोध किया और अंततः उन्हें कैद कर दिया गया.

9. पूर्णिमा बनर्जी

आप भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस इलाहाबाद में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की सचिव बनीं और महिलाओं से जुड़े कई मुद्दों पर अपनी आवाज उठाती रहीं।

1930-40 में देश के आजादी से जुड़े कई आंदोलन में इन्होने भाग लिया। अंग्रेजो भारत छोड़ो आंदोलन और सत्याग्रह आंदोलन के कारण इनको जेल भी जाना पड़ा।

जेल में रह कर इन्होने स्नातक की पड़ी की| इन्होने ब्रिटिश साम्राज्य के खिलाफ अंग्रेजो की दमनकारी नीतियों का डटकर मुकाबला किया.

वह उत्तर प्रदेश की महिलाओं के एक कट्टरपंथी नेटवर्क में से एक थी जो 1930 के दशक के अंत में और 40 के दशक में स्वतंत्रता आंदोलन के अग्रभाग में सबसे आगे थीं.

10. अमृत कौर

अमृत कौर का जन्म 2 फरवरी 1889 को लखनऊ, उत्तर प्रदेश में हुआ था| इन की पढ़ाई लिखाई इंगलैंड में हुई| वह सबकुछ छोड़कर 16 वर्षों तक महात्मा गांधी की सेक्रेटरी रहीं.

आप एम्स की संस्थापक रहीं| आप महिला शिक्षा, खेल और स्वास्थ्य के लिए हमेशा जागरूक रही| उन्होंने देश में TB एसोसिएशन, सेंट्रल लेप्रेसी एंड रिसर्च इंस्टीट्यूट का निर्माण किया| उन्होंने संविधान निर्माण के दौरान महिला स्वास्थ्य से जुड़े मुद्दे उठाए.

स्वतंत्रता की लडा़ई में इनका अहम योगदान रहा है| आजादी के बाद ये प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू की कैबीनेट में देश की पहली महिला कैबिनेट मिनिस्टर बनीं|

उन्‍हें हेल्‍थ मिनिस्‍टर बनाया गया| वह संविधान सभा की सलाहकार समिति व मौलिक अधिकारों की उप समिति की सदस्‍य थीं। सभा में वह सेंट्रल प्राविंस व बेरार की प्रतिनिधि के तौर पर शामिल हुई थीं.

आप गाँधी जी की अनुयायी थी| 1927 में All India Women कांफ्रेंस की सह संस्थापक थी| इन्होने पर्दा प्रथा और बाल विवाह के खिलाफ आवाज उठाई| 1964 में जब उनकी मृत्यु हो गई| The New York Times ने उन्हें अपनी देश की सेवा में “राजकुमारी” कहा.

11. रेणुका रॉय

इनकी पढ़ाई लिखाई लंदन में हुई। उन्होंने 1934 में लीगल डिसेबिलीटी ऑफ वुमेन इन इंडिया का गठन किया था| उन्होंने महिला के अधिकारों के लिए कई लड़ाइयां लड़ी और संविधान में महिलाओं की बात रखने में अहम योगदान दिया.

1934 में AIWC के कानूनी सचिव के रूप में, उन्होंने “भारत में महिलाओं की कानूनी विकलांगता” नामक एक दस्तावेज़ प्रस्तुत किया; उन्होंने महिलाओं के अधिकारों के लिए बात करते हुए कहा था कि पूरी दुनिया में महिलाओं की स्थिति अन्यायपूर्ण बताया|

उन्होंने महिला के अधिकारों के लिए लड़ाई लड़ी और पैतृक सम्पत्ति में महिलाओं को हक दिलाने के लिए आवाज बुलंद की|

उन्होंने अखिल बंगाल महिला संघ और महिला समन्वयक परिषद की स्थापना की| आप केन्द्रीय विधान सभा में महिला प्रतिनिधि चुनी गयी.

1952-57 में, उन्होंने पश्चिम बंगाल विधानसभा में राहत और पुनर्वास के मंत्री के रूप में कार्य किया। 1957 में और फिर 1962 में, वह लोकसभा की सदस्य रही। वह 1952 में योजना आयोग और शांति निकीतन में विश्व भारती विश्वविद्यालय के शासी निकाय पर कार्यरत थी.

12. सरोजिनी नायडु

सरोजिनी नायडु का जन्म हैदराबाद में 13 फरवरी 1879 में हुआ था| वह पहली भारतीय महिला हैं जो भारतीय नेशनल कांग्रेस की अध्यक्ष बनीं|

सरोजनी नायडु ने लंदन के किंग्स कॉलेज से पढ़ाई की| वह महात्मा गांधी के कई आंदोलनों से जुड़ी रही है| भारतीय राज्य गवर्नर नियुक्त किया गया था| उन्हें लोकप्रिय रूप से “नाइटिंगेल ऑफ इंडिया” कहा जाता है.

इंग्लैंड में प्रत्यर्पण अभियान में कुछ अनुभव के बाद, उन्हें भारत के कांग्रेस आंदोलन और महात्मा गांधी के असहयोग आंदोलन के लिए तैयार किया गया था। 1924 में उन्होंने भारतीयों के हित में अफ्रीका की यात्रा की और उत्तरी अमेरिका का दौरा किया, 1928-29 में कांग्रेस आंदोलन पर व्याख्यान दिया.

सरोजिनी नायडू अपनी साहित्यिक शक्ति के लिए भी जाने जाते जाती है.

महात्मा गांधी जी इनको बुलबुल कहते थे| आप पहली महिला राज्यपाल थी| 1917 में Women Indian Association बनाई थी.

13. सुचेता कृपलाणी

सुचेता कृपलाणी का जन्म अंबाला टाउन में 1908 में हुआ था| वह 1942 भारत छोड़ो मूवमेंट में अहम किरदार निभाया| उन्होंने कांग्रेस में 1940 में विमेन विंग की स्थापना की। आजादी के बाद कृपलाणी नई दिल्ली से एमपी बनींऔर उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री भी बनीं.

कृपलानी ने 1940 में कांग्रेस पार्टी की महिला विंग की भी स्थापना की|

स्वतंत्रता के बाद, कृपलानी राजनीतिक कार्यकाल में नई दिल्ली के एक सांसद और फिर उत्तर प्रदेश की राज्य सरकार में श्रम, सामुदायिक विकास और उद्योग मंत्री के रूप में कार्यरत थी.

उन्होंने चंद्र भानु गुप्ता से उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री के रूप में पदभार संभाला और 1967 तक शीर्ष पद पर कब्जा कर लिया| वह भारत की पहली महिला मुख्यमंत्री थीं.

आपने नेहरु जी की ट्रिस्ट विथ डेस्टिनी भाषण से पहले वन्दे मातरम गया था |

14. विजयलक्ष्मी पंडित

विजयलक्ष्मी पंडित का जन्म 18 अगस्त 1900 में ईलाहाबाद में हुआ| विजयलक्ष्मी पंडित भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू की बहन भी हैं| वह आजादी के दौरान 1932-1933, 1940 और 1942-43 में तीन बार जेल भी गई|

उन्होंने महिलाओं के अधिकारों के लिए काफी काम किया और पहली महिला कैबिनेट मंत्री भी बनी और 1953 में पहली भारतीय महिला यूएन जेनरल एसेंबली में शामिल होने वाली पहली एशियन महिला का खिताब मिला.

राजनीति में पंडित का लंबा करियर आधिकारिक तौर पर इलाहाबाद नगर निगम के चुनाव के साथ शुरू हुआ। 1936 में, वह संयुक्त प्रांत की असेंबली के लिए चुनी गई और 1937 में स्थानीय स्व-सरकार और सार्वजनिक स्वास्थ्य मंत्री बन गई.

सभी कांग्रेस पार्टी के पदाधिकारियों की तरह, उन्होंने 1939 में ब्रिटिश सरकार की घोषणा के विरोध में इस्तीफा दे दिया कि भारत द्वितीय विश्व युद्ध में भागीदार था| सितंबर 1953 में, उन्हें पहली महिला और यूएन जनरल असेंबली की अध्यक्ष चुने जाने वाली पहली एशियाई नियुक्त किया गया था.

आप सयुंक्त राष्ट्र महासभा की पहली एशियाई अध्यक्ष थी.

15. एनी मसकारेने

एनी मसकारेने लैटिन कैथोलिक फैमिली में पैदा हुई थीं। ट्रेवणकोर स्टेट कांग्रेस को ज्वाइन करने वाली पहली महिला बनी| आजादी की लड़ाई में वो कई बार जेल भी गईं.

भारत में हुए चुनाव में वह पहली महिला थी जो लोक सभा चुनाव जीतकर पहुंची| वह केरल से पहली महिला सांसद बनीं और दस वर्षों तक रहीं.

एनी 1949 से 1950 वह त्रावणकोर राज्य कांग्रेस में शामिल होने वाली पहली महिलाओं में से एक थीं और त्रावणकोर राज्य कांग्रेस कार्यकारिणी का हिस्सा बनने वाली पहली महिला बनीं| वह त्रावणकोर राज्य में स्वतंत्रता और भारतीय राष्ट्र के साथ एकीकरण के आंदोलनों के नेताओं में से एक थीं.

अपने राजनीतिक सक्रियता के लिए, उन्हें 1939 -77 से विभिन्न अवधि के लिए कैद किया गया था। मास्करेन भारतीय आम चुनाव में 1951 में पहली लोकसभा के लिए चुनी गई थी| वह केरल के पहली महिला सांसद थी.

संसद में उनके चुनाव से पहले, उन्होंने 1949-50 के दौरान स्वास्थ्य और शक्ति के प्रभारी मंत्री के रूप में संक्षेप में सेवा की थी| केरल की पहली महिला जिसने त्रावनकोर स्टेट कांग्रेस में हिस्सा लिया| आप केरल से पहली महिला सांसद बनी.

मै उम्मीद करता हूँ की आपको आज की जानकारी पसंद आई होगी|

आज मैंने आपको भारत की 15 ऐसी महिलाएं जिन्होंने तराशा भारतीय संविधान को के बारे में बताया है| आपको जानकारी कैसी लगी हमको कमेंट के माध्यम से जरुर बताये अथवा जानकारी पसंद हो तो इसे सोशल मीडिया पर शेयर जरुर करें.

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