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श्री हनुमान चालीसा डाउनलोड हिंदी में अर्थ सहित
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श्री हनुमान चालीसा अर्थ सहित हिंदी में -}} जय हनुमान ज्ञान गुण सागर जय कपीस तिहुँ लोक उजागर {{

हनुमान चालीसा एक काव्यात्मक कृति है| इसे तुलसीदास जी ने लिखा है| हनुमान चालीसा में भगवान हनुमान जी के गन और उनके कार्य तथा उसकी श्री राम जी के लिए अटूट भक्ति चौपाइयो के द्वारा हनुमान में दर्शाई गई है.

यह एक लघु रचना है जिसमें हनुमान जी की सुंदर स्तुति को दिखाया गया है| इस हनुमान जी की भावपूर्ण वंदना तो है ही और साथ ही श्री राम जी का व्यक्तित्व भी सरल शब्दो में दिखाया गया है.

कया आप सब जानते है जब हनुमान जी सूर्य देव को फल समझ कर उन्हें खाने के लिए सूर्य देव की और चल पढ़े थे तभी उनके पास ऐसी अध्बुध शक्तियां थी की वो आकाश मार्ग से उड़कर सूर्य देव की और जा रहे थे परन्तु तभी इंद्र देव जी ने भगवान हनुमान पर प्रहार कर दिया था जिसके कारण हनुमान जी मूर्छित हो गए थे.

जब यह बात वायु देव के पास पहुंची तो वो बहुत नाराज़ हुए और तभी सभी देवी देवताओं को पता चला की हनुमान जी भगवान शिव के ग्यारवे अवतार अर्थार्त उनके रूद्र अवतार है.

तब सभी देवी देवताओं ने हनुमान जी को अध्बुध शक्तियां प्रदान की!

कहते है जिन मंत्रो और जिन विशेषताओं को देवो ने हनुमान जी को शक्तियां प्रदान की थी वो सभी मंत्र और विशेषता तुलसीदास जी की लिखी हनुमान चालीसा में है इसी लिए हनुमान चालीसा को इतना चमत्कारी माना गया है.

परंतु हनुमान चालीसा में तो कोई मंत्र है ही नहीं, फिर मंत्रों के बिना भी वह चमत्कारी प्रभाव देने में सक्षम कैसे है?

दरअसल हनुमान चालीसा में मंत्र ना होकर हनुमानजी की पराक्रम की विशेषताएं बताई गईं हैं| कहते हैं इन्हीं का जाप करने से व्यक्ति सुख प्राप्त करता है.

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आइये अब हम आप सबको बताते है हनुमान चालीसा की उन चौपाइयों के बारे में, जिनका यदि नियमित सच्चे मन से वाचन किया जाए तो यह परम फलदायी सिद्ध होती हैं.

हनुमान चालीसा का जाप करने से सभी प्रकार के भूत प्रेत दूर रहते है और कोई भी बुरी चीज निकट नही आती.

यदि मंगलवार और शनिवार को नियमपूर्वक हनुमान चालीसा का पाठ किया जाये तो भगवान हनुमान जी उसपर कोई भी संकट हावि नही होने देते और स्वम् अपने भक्तों की रक्षा करते है.

जरुर पढ़े ⇒ हनुमान जयंती पर निबंध, पूजाविधि, कथा, महत्व और कहानी

Shree Hanuman Chalisa Lyrics in Hindi Download

श्री हनुमान चालीसा डाउनलोड हिंदी में अर्थ सहित

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।। हनुमान चालीसा के दोहे।।

श्रीगुरु चरन सरोज रज, निज मन मुकुरु सुधारि।
बरनउँ रघुबर बिमल जसु, जो दायकु फल चारि।।
बुद्धिहीन तनु जानिके, सुमिरौं पवन–कुमार।
बल बुद्धि बिद्या देहु मोहिं, हरहु कलेस बिकार।।

हनुमान चालीसा का अर्थ हिंदी में ⇒ तुलसीदास जी अपने गुरु को नमन करते हुए उनके चरण कमलों की धूल से अपने मन रुपी दर्पण को निर्मल करते हैं| वे कहते हैं कि श्रीराम के बिमल जस यानि दोष रहित यश का वर्णन करता हूँ, जो धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष रुपी चार फल प्रदान करने वाला है.

स्वयं को बुद्धिहीन जानकर अर्थात पूरे समर्पण के साथ पवन-पुत्र श्री हनुमान का स्मरण करता हूँ। हे महावीर मुझे बल, बुद्धि और बिद्या प्रदान करें व सारे कष्ट, रोग, विकार हर लें। कुल मिलाकर दोहे के माध्यम से संदेश मिलता है कि हनुमान चालीसा के पाठ से पहले अपने मन का पवित्र होना जरुरी है।

अपने गुरु, माता-पिता, भगवान को याद करने से मन स्वच्छ हो जाता है| फिर भगवान राम की महिमा का वर्णन करना भी काफी फलदायक होता है। फिर अपने को रामदूत हनुमान को समर्पित करें, श्री हनुमान की कृपा से आपको बल, बुद्धि और विद्या मिलेगी व साथ ही सारे पाप और कष्टों से भी बजरंग बलि मुक्ति दिलाएंगें.

मनोकामना पूरी करने वाली हनुमान चालीसा की चौपाई

⇓ हनुमान जी की चौपाइयां ⇓

जय हनुमान ज्ञान गुन सागर। जय कपीस तिहुँ लोक उजागर।
राम दूत अतुलित बल धामा। अंजनि पुत्र पवनसुत नामा।।

अर्थ : हे ज्ञान व गुण के सागर श्री हनुमान आपकी जय हो। तीनों लोकों में वानरराज, वानरों के ईश्वर के रुप उजागर आपकी जय हो। आप अतुलनीय शक्ति के धाम भगवान श्रीराम के दूत, माता अंजनी के पुत्र व पवनसुत के नाम से जाने जाते हैं।

महाबीर बिक्रम बजरंगी। कुमति निवार सुमति के संगी।
कंचन बरन बिराज सुबेसा। कानन कुण्डल कुंचित केसा।।

अर्थ : श्री हनुमान आप महान वीर हैं, बलवान हैं, आपके अंग बज्र के समान हैं। आप कुमति यानि खराब या नकारात्मक बुद्धि को दूर कर सुमति यानि सद्बुद्धि प्रदान करते हैं, आपका रंग स्वर्ण के समान है, और आप सुंदर वेश धारण करने वाले हैं, आपके कानों में कुंडल आपकी शोभा को बढ़ाते हैं व आपके बाल घुंघराले हैं।

हाथ बज्र औ ध्वजा बिराजै। काँधे मुँज जनेऊ साजै।।
शंकर सुवन केसरी नन्दन। तेज प्रताप महा जग बन्दन।।

अर्थ : आप हाथों में वज्र यानि गदा और ध्वज धारण करते हैं, आपके कंधे पर मूंज का जनेऊ आपकी शोभा को बढ़ाता है। आप शंकर सुवन यानि भगवान श्री शिव के अंश हैं व श्री केसरी के पुत्र हैं। आपके तेज और प्रताप की समस्त जगत वंदना करता है।

विद्यावान गुनी अति चातुर। राम काज करिबे को आतुर।।
प्रभु चरित्र सुनिबे को रसिया। राम लखन सीता मन बसिया।।

अर्थ : आप विद्वान हैं, गुणी हैं और अत्यंत बुद्धिमान भी हैं, भगवान श्रीराम के कार्यों को करने के लिए हमेशा आतुर रहते हैं, आप श्रीराम कथा सुनने के रसिक हैं व भगवान राम, माता सीता व लक्ष्मण आपके हृद्य में बसे हैं। (प्रभु चरित्र सुनिबे को रसिया इसी पंक्ति के आधार पर कहा जाता है कि आज भी कहीं पर रामकथा का आयोजन हो रहा होता है तो श्री हनुमान किसी न किसी रुप में वहां मौजूद रहते हैं व रामकथा सुनते हैं।)

सूक्ष्म रूप धरि सियहिं दिखावा। विकट रूप धरि लंक जरावा।।
भीम रूप धरि असुर सँहारे। रामचन्द्र के काज सँवारे।।

अर्थ : आपने माता सीता को अपना सूक्ष्म रुप दिखलाया तो वहीं विकराल रुप धारण कर लंका को जलाया आपने विशाल रुप धारण कर असुरों का संहार किया। भगवान श्री राम के कार्यों भी आपने संवारा।

लाय संजीवन लखन जियाये। श्री रघुबीर हरषि उर लाये।
रघुपति कीन्ही बहुत बड़ाई। तुम मम प्रिय भरतहि सम भाई।।

अर्थ : संजीवनी बूटी लाकर आपने लक्ष्मण के प्राण बचा लिये जिससे भगवान श्री राम ने आपको खुशी से हृद्य से लगा लिया। भगवान राम ने आपकी बहुत प्रशंसा की व आपको अपने भाई भरत के समान प्रिय बतलाया।

सहस बदन तुम्हरो जस गावैं। अस कहि श्रीपति कंठ लगावैं।।
सनकादिक ब्रह्मादि मुनीसा। नारद सारद सहित अहीसा।।

अर्थ : भगवान राम ने आपको गले लगाकर कहा कि आपका यश हजारों मुखों से गाने लायक है। श्री सनक, श्री सनातन, श्री सनन्दन, श्री सनत्कुमार आदि ऋषि मुनि ब्रह्मा आदि देवता, नारद जी सरस्वती जी और शेषनाग जी सभी आप गुणगान करते हैं।

जम कुबेर दिगपाल जहाँ ते। कबि कोबिद कहि सके कहाँ ते।।
तुम उपकार सुग्रीवहिं कीन्हा। राम मिलाय राज पद दीन्हा।।

अर्थ : मृत्यु के देवता यम, धन के देवता कुबेर, दशों दिशाओं के रक्षक अर्थात दिगपाल आदि भी आपके यश का गुणगान करने में असमर्थ हैं ऐसे में कवि और विद्वान कैसे आपकी किर्ती का वर्णन कर सकते हैं। आपने तो भगवान राम से मिलाकर सुग्रीव पर उपकार किया, जिसके बाद उन्हें राज्य प्राप्त हुआ।

तुम्हरो मन्त्र विभीषन माना। लंकेश्वर भए सब जग जाना।।
जुग सहस्त्र जोजन पर भानू। लील्यो ताहि मधुर फल जानू।।

अर्थ : आपकी बात को मानकर ही विभीषण लंका का राजा बना समस्त जग इस बारे में जानता है। जो सूरज यहां से सहस्त्र योजन की दूरी पर स्थित है जिस तक पंहुचने में ही हजारों युग लग जाएं उस सूरज को आपने एक मीठा फल समझ कर निगल लिया।

प्रभु मुद्रिका मेलि मुख माहीं। जलधि लाँघि गये अचरज नाहीं।।
दुर्गम काज जगत के जेते। सुगम अनुग्रह तुम्हरे तेते।।

अर्थ : इसमें कोई अचरज या आश्चर्य नहीं है कि आपने भगवान श्री राम की अंगूठी को मुंह में रखकर समुद्र को लांघ लिया। इस संसार में जितने में भी मुश्किल माने जाने वाले कार्य हैं, आपकी कृपा से बहुत आसान हो जाते हैं।

राम दुआरे तुम रखवारे। होत न आज्ञा बिनु पैसारे।।
सब सुख लहै तुम्हरी सरना। तुम रक्षक काहू को डर ना।।

अर्थ : भगवान श्री राम के द्वार पर आप रक्षक की तरह तैनात हैं, इसलिए आपकी अनुमति, आपकी आज्ञा के बिना कोई भगवान राम तक नहीं पंहुच सकता। तमाम तरह के सुख आपकी शरण लेते हैं। इसलिए जिसके रक्षक आप होते हैं, उसे किसी तरह से भी डरने की जरुरत नहीं होती।

आपन तेज सम्हारो आपै। तीनों लोक हाँक तें काँपै।।
भूत पिसाच निकट नहिं आवै। महाबीर जब नाम सुनावै।।

अर्थ : हे बजरंगबली महावीर हनुमान, आपके तेज को बस आप ही संभाल सकते हों, आपकी ललकार से तीनों लोक कांपते हैं। हे महावीर जहां भी आपका नाम लिया जाता है, भूत-पिशाचों की पास फटकने की भी औकात नहीं होती, अर्थात भूत-प्रेत आदि निकट नहीं आते।

नासै रोग हरै सब पीरा। जपत निरन्तर हनुमत बीरा।।
संकट तें हनुमान छुड़ावै। मन क्रम बचन ध्यान जो लावै।।

अर्थ : हे वीर हनुमान जो निरंतर आपके नाम का जाप करते हैं उनके सारे रोग नष्ट हो जाते हैं आप उनके सारे दर्द को हर लेते हैं। मन, वचन और कर्म से जो भी आपका ध्यान लगाता है आप उसे हर संकट से मुक्ति दिलाते हैं।

सब पर राम तपस्वी राजा। तिन के काज सकल तुम साजा।।
और मनोरथ जो कोई लावै। सोइ अमित जीवन फल पावै।।

अर्थ : तपस्वी राजा भगवान श्री रामचंद्र जी सबसे श्रेष्ठ हैं, आपने उनके सभी कार्य सहजता से किए। जो कोई भी अपने मन की ईच्छा सच्चे मन से आपके सामने रखता है, वह अनंत व असीम जीवन का फल प्राप्त करता है।

चारों जुग परताप तुम्हारा।। है परसिद्ध जगत उजियारा।।
साधु सन्त के तुम रखवारे। असुर निकंदन राम दुलारे।।

अर्थ : सतयुग द्वापर त्रेता कलयुग चारों युगों में आपकी महानता है। आपका प्रकाश समस्त संसार में प्रसिद्ध है। आप साधु संतों के रखवाले और असुरों का विनाश करने वाले श्री राम के दुलारे हैं अर्थात श्री राम के बहुत प्रिय हैं।

अष्ट सिद्धि नौ निधि के दाता। अस बर दीन जानकी माता।।
राम रसायन तुम्हरे पासा। सदा रहो रघुपति के दासा।।

अर्थ : हे श्री हनुमान जानकी यानि सीता माता ने आपको वरदान दिया है। जिससे आप आठों सिद्धियां और नौ निधियां किसी को भी दे सकते हैं। आपके पास राम नाम का रसायन है, आप सदा से भगवान श्री राम के सेवक रहे हैं।

तुम्हरे भजन राम को पावै। जनम जनम के दु:ख बिसरावै।।
अन्त काल रघुबर पुर जाई। जहाँ जन्म हरि–भक्त कहाई।।

अर्थ : आपका भजन करके ही भगवान राम को प्राप्त किया जा सकता है व आपके स्मरण मात्र से ही जन्मों के पाप कट जाते हैं, दुख मिट जाते हैं। आपकी शरण लेकर ही मृत्यु पर्यन्त भगवान श्री राम के धाम, यानि बैकुण्ठ में जाया जा सकता है, जहां पर जन्म लेने मात्र से हरि-भक्त कहलाते हैं।

और देवता चित्त न धरई। हनुमत् सेई सर्व सुख करई।।
संकट कटै मिटे सब पीरा। जो सुमिरै हनुमत बलबीरा।।

अर्थ : जब आपकी सेवा आपके स्मरण से सारे सुख प्राप्त हो जाते हैं, तो फिर और देवताओं में ध्यान लगाने की जरुरत नहीं है। हे वीर हनुमान जो कोई भी आपके नाम का स्मरण करता है, उसके सारे संकट कट जाते हैं, सारे दुख, सारी तकलीफें मिट जाती हैं।

जय जय जय हनुमान गौसाईं। कृपा करहु गुरुदेव की नाईं।
जो सत बार पाठ कर कोई। छुटहि बंदि महासुख होई||

अर्थ : हे भक्तों के रक्षक स्वामी श्री हनुमान जी, आपकी जय हो, जय हो, जय हो। आप मुझ पर श्री गुरुदेव की तरह कृपा करें। जो कोई भी सौ बार इस चालीसा का पाठ करेगा, उसके सारे बंधन, सारे कष्ट दूर हो जाएंगें व महासुख की प्राप्ति होगी, अर्थात उसे मोक्ष की प्राप्ति होगी।

जो यह पढ़ै हनुमान् चालीसा। होय सिद्धि साखी गौरीसा।।
तुलसीदास सदा हरि चेरा। कीजै नाथ हृदय महँ डेरा।।

अर्थ : जो कोई भी इस हनुमान चालीसा का पाठ करेगा, उसकी मनोकामनाएं पूरी होंगी। उसको सिद्धियां प्राप्त होंगी, इसके साक्षी स्वयं शंकर भगवान हैं। महाकवि गोस्वामी तुलसीदास जी कहते हैं कि वे सदा भगवान श्री राम के सेवक रहे हैं, इसलिए हे स्वामी आप मेरे हृद्य में निवास कीजिये|

।। दोहा।।

पवनतनय संकट हरन, मंगल मूरति रूप।
राम लखन सीता सहित, हृदय बसहु सुर भूप।।

अर्थ : हे पवनसुत, हे संकटों को हरने वाले संकट मोचन, हे कल्याणकारी, हे देवराज आप भगवान श्री राम, माता सीता और श्री लक्ष्मण सहित मेरे हृद्य में निवास करें।

श्री हनुमान चालीसा का भजन – Shri Hanuman Chalisa in Hindi

दोहा :

श्रीगुरु चरन सरोज रज, निज मनु मुकुरु सुधारि।
बरनऊं रघुबर बिमल जसु, जो दायकु फल चारि।।
बुद्धिहीन तनु जानिके, सुमिरौं पवन-कुमार।
बल बुद्धि बिद्या देहु मोहिं, हरहु कलेस बिकार।।

चौपाई :

जय हनुमान ज्ञान गुन सागर।
जय कपीस तिहुं लोक उजागर।।

रामदूत अतुलित बल धामा।
अंजनि-पुत्र पवनसुत नामा।।

महाबीर बिक्रम बजरंगी।
कुमति निवार सुमति के संगी।।

कंचन बरन बिराज सुबेसा।
कानन कुंडल कुंचित केसा।।

हाथ बज्र औ ध्वजा बिराजै।
कांधे मूंज जनेऊ साजै।

संकर सुवन केसरीनंदन।
तेज प्रताप महा जग बन्दन।।

विद्यावान गुनी अति चातुर।
राम काज करिबे को आतुर।।

प्रभु चरित्र सुनिबे को रसिया।
राम लखन सीता मन बसिया।।

सूक्ष्म रूप धरि सियहिं दिखावा।
बिकट रूप धरि लंक जरावा।।

भीम रूप धरि असुर संहारे।
रामचंद्र के काज संवारे।।

लाय सजीवन लखन जियाये।
श्रीरघुबीर हरषि उर लाये।।

रघुपति कीन्ही बहुत बड़ाई।
तुम मम प्रिय भरतहि सम भाई।।

सहस बदन तुम्हरो जस गावैं।
अस कहि श्रीपति कंठ लगावैं।।

सनकादिक ब्रह्मादि मुनीसा।
नारद सारद सहित अहीसा।।

जम कुबेर दिगपाल जहां ते।
कबि कोबिद कहि सके कहां ते।।

तुम उपकार सुग्रीवहिं कीन्हा।
राम मिलाय राज पद दीन्हा।।

तुम्हरो मंत्र बिभीषन माना।
लंकेस्वर भए सब जग जाना।।

जुग सहस्र जोजन पर भानू।
लील्यो ताहि मधुर फल जानू।।

प्रभु मुद्रिका मेलि मुख माहीं।
जलधि लांघि गये अचरज नाहीं।।

दुर्गम काज जगत के जेते।
सुगम अनुग्रह तुम्हरे तेते।।

राम दुआरे तुम रखवारे।
होत न आज्ञा बिनु पैसारे।।

सब सुख लहै तुम्हारी सरना।
तुम रक्षक काहू को डर ना।।

आपन तेज सम्हारो आपै।
तीनों लोक हांक तें कांपै।।

भूत पिसाच निकट नहिं आवै।
महाबीर जब नाम सुनावै।।

नासै रोग हरै सब पीरा।
जपत निरंतर हनुमत बीरा।।

संकट तें हनुमान छुड़ावै।
मन क्रम बचन ध्यान जो लावै।।

सब पर राम तपस्वी राजा।
तिन के काज सकल तुम साजा।

और मनोरथ जो कोई लावै।
सोइ अमित जीवन फल पावै।।

चारों जुग परताप तुम्हारा।
है परसिद्ध जगत उजियारा।।

साधु-संत के तुम रखवारे।
असुर निकंदन राम दुलारे।।

अष्ट सिद्धि नौ निधि के दाता।
अस बर दीन जानकी माता।।

राम रसायन तुम्हरे पासा।
सदा रहो रघुपति के दासा।।

तुम्हरे भजन राम को पावै।
जनम-जनम के दुख बिसरावै।।

अन्तकाल रघुबर पुर जाई।
जहां जन्म हरि-भक्त कहाई।।

और देवता चित्त न धरई।
हनुमत सेइ सर्ब सुख करई।।

संकट कटै मिटै सब पीरा।
जो सुमिरै हनुमत बलबीरा।।

जै जै जै हनुमान गोसाईं।
कृपा करहु गुरुदेव की नाईं।।

जो सत बार पाठ कर कोई।
छूटहि बंदि महा सुख होई।।

जो यह पढ़ै हनुमान चालीसा।
होय सिद्धि साखी गौरीसा।।

तुलसीदास सदा हरि चेरा।
कीजै नाथ हृदय मंह डेरा।।

दोहा :

पवन तनय संकट हरन, मंगल मूरति रूप।
राम लखन सीता सहित, हृदय बसहु सुर भूप।।

प्रिय भक्तों, श्री हनुमान चालीसा का यह लेख यही पर खत्म होता है| सभी भक्तों से अनुरोध है की भगवान हनुमान जी के इस लेख को बाकि सभी भक्तों के साथ व्हाट्सएप्प, ट्विटर, फेसबुक इत्यादि जगह शेयर करें और कमेंट बॉक्स में हनुमान जी के प्रति कुछ शब्द लिखे.

|| जय श्री राम, जय हनुमान जी, पवन पुत्र बजरंगबली हनुमान की जय ||

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15 Comments

  1. बहुत अच्छी पोस्ट है हनुमान चालीसा की
    जय श्री राम

  2. जय हनुमान ज्ञान गुण सागर जय कपीस तिहुँ लोक उजागर,,,जय श्री राम Bahut Acchi Post Hai

  3. बहुत अच्छी पोस्ट है हनुमान चालीसा की
    जय श्री राम

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