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गुरु गोबिंद सिंह जयंती 2018 हिंदी में

गुरु गोबिंद सिंह जयंती 2021 और उनकी जीवनी

गुरु गोबिंद सिंह जयंती – गुरु गोबिंद सिंह जी का जन्म 22 दिसंबर 1666 में हुआ था| गुरु गोबिंद  सिंह जी सिखों के दसवे गुरु थे.

गुरु गोबिंद सिंह जी एक महान योद्धा और एक महान शासक थे उन्होंने खालसा पथ की स्थापना की थी| खालसा पथ की स्थापना सिक्खो के इतिहास की सबसे महत्वपूर्ण घटना है.

गुरु गोबिंद सिंह जी का जन्म पटना बिहार में हुआ था ये सिक्खो के दसवे गुरु होने के साथ साथ आखरी गुरु भी थे| इनके पिता का नाम गुरु तेग बहादुर और माता का नाम गुजरी था.

गुरु गोबिंद सिंह जी ने सिक्खो के पवित्र ग्रन्थ “गुरु ग्रन्थ साहिब” को पूरा किया था| गोबिंद सिंह जी को सर्वस्वदानी भी खा जाता हैक्यूंकि उन्होंने धर्म के लिए अपने पुरे परिवार का बलिदान किया था उन्हें कलगीधर, बांजावाले, दशमेश आदि और भी कई नामो से पुकारा जाता है.

गुरु गोबिंद सिंह जयंती 2021

Guru Gobind Singh Jayanti 2018

गुरु गोबिंद सिंह जी एक महान योद्धा भी थे और साथ ही वे एक महान लेखक भी थे उन्होंने कई ग्रंथो की रचना की थी वे सांस्कृतिक सहित कई भाषाओ के ज्ञाता थे.

वे विद्वानों के सरंक्षक भी थे उनके दरबार में 52 कवियों और लेखको की उपस्तिथि होती है इसी वजह से उन्हें संत सिपाही भी कहा जाता है वे भक्ति और शक्ति दोनों के असीम संगम थे.

उन्हें दस वर्ष की अवस्था में गुरु की गद्दी मिली थी वे सैनिको की भाति ही घुड़सवारी करना और तलवारबाजी किया करते थे.

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इनके शिष्य और दरबारी उन्हें “सच्चे बादशाह” कहते है|

गुरु गोबिंद सिंह जी सिक्खो के आग्रह पर आनंदपुर आ गए जो की तेग बहादुर जी की राजधानी थी.

यहा रहकर ही उन्होंने 20 वर्षो तक धर्म ग्रंथो का अध्ययन किया और एक अच्छे कवि बने| उन्होंने एक पुस्तक “विचित्र नाटक” जिसके द्वारा लोगो में उत्साह भरने की चेस्टा की.

गुरु गोबिंद सिंह जी ने सिक्खो को पांच वस्तुओ को धारण करना जरूरी बताया है ये पांच वस्तुए-

  1. केश
  2. कंघा
  3. कडा
  4. कच्छ
  5. किरपाण

है इन्हे पांच ककार कहते है|

Guru Gobind Singh Jayanti 2021 in Hindi

गुरु ने अपने शिष्यो से जाती सूचक शब्द छोडकर प्रत्येक सिक्ख के नाम के साथ सिंह जोड़ना जरूरी समझा उन्होंने सदा प्रेम और भाईचारे का संदेश दिया.

गुरु जी की मान्यता थी की किसी से डरना नहीं चाइये लेकिन किसी को डराना भी नहीं चाइये वे हमेशा अपनी वाणी से एक उपदेश दिया करते थे “भै काहू को देत नहि, नहि भय मानत आन।”

वे बाल्यकाल से ही सरल, सहज, भक्ति-भाव  स्वभाव के थे वैराग्य की भावना उनके मन में कूट कूट कर भरी थी.

आंनदपुर सहाब को छोडकर वापस आना

सिरमौर के राजा मत प्रकाश के निमंत्रण पर अप्रैल 1685 में गुरु गोबिंद सिंह ने अपने निवास को सिरमौर राज्य के पावंटा शहर में स्थानांतरित कर दिया.

राजा भीम चंद के साथ मतभेद के कारण गुरु जी को सिरमौर राज्य के गजट के अनुसार आनंदपुर साहिब छोड़ने के लिए मजबूर किया गया था.

मत प्रकाश राजा ने राजा फतेह शाह के खिलाफ अपनी स्तिथि मजबूत करने के लिये गुरु जी को अपने राज्य में आमंत्रित किया था.

गुरु गोबिंद सिंह जी पावंटा में लगभग 3 वर्ष तक रहे और वह रहकर भी उन्होंने  कई ग्रंथो की रचना की उन्होंने नादौन की लड़ाई में अलिफ़ खान और उसकी सहयोगी सेना को हरा दिया था.

खालसा पथ की स्थापना (गुरु गोबिंद सिंह जयंती)

गुरु गोबिंद सिंह जी ने 1699 में बैसाखी के दिन खालसा पथ की स्थापना की थी उनका नेतृत्व सिख समुदाय के इतिहास में बहुत कुछ नया लेकर आया था.

एक बार गुरु गोबिंद सिंह जी ने एक सिख समुदाय की सभा में सबके सामने पूछा की कौन अपने सर का बलिदान देना चाहता है तो एक आदमी ने हाथ उठाया गुरु जी उसे तम्बू में लेकर गए और खून से सनी तलवार लेकर वापस आये.

उन्होंने फिर से यही प्रशन पूछा कौन अपने सर का बलिदान देना चाहता है? इस तरह पांच आदमियों ने अपना बलिदान देने के लिए हां की थी.

गुरु जी इन पांचो को तम्बू से जीवित बाहार लेकर आये और इन्हे पांच प्यारे का नाम दिया या पहले पांच खालसा का नाम दिया.

सबके बाद गुरु जी ने एक लोहे के कटोरे में पानी और चीनी को मिलाया इस मिश्रण को गुरु जी ने अमृत का नाम दिया पहले पांच खालसा के बाद उन्होंने इसे छटवा खालसा का नाम दिया.

गुरु गोबिंद सिंह जी के तीन विवाह
  1. गुरु जी का पहला विवाह माता जीतो से हुआ था| 21 जून 1677 आनंदपुर से दस किलोमीटर दूर बसंतगढ़ में उनका विवाह माता जीतो से हुआ था.
  2. दूसरा विवाह माता सुंदरी से 4 अप्रैल 1684 को आनंदपुर में किया  था.
  3. माता साहिब देन से 15 अप्रैल 1700 को उनका तीसरा विवाह हुआ.
गुरु गोबिंद सिंह जयंती जी के बारे में कुछ अनोखी बातें – Life History of Guru Govind Singh Ji in Hindi

Life History of Guru Govind Singh Ji in Hindi

वे सिर्फ नो वर्ष की उम्र में ही सिखों के दसवे गुरु बन गए थे उनके पिता जी के नक़्शे कदम पर चलकर मुगलशासक ओरंगजेब से कश्मीरी हिन्दू की रक्षा की थी.

बचपन में ही गुरु गोबिंद सिंह जी ने हिंदी, उर्दू, फारसी, बृज और भी कई भाषा सीखी.

गुरु गोबिन्द सिंह आनंदपुर के शहर भीम चंड से हाथापाई होने के कारण छोडा और नहान चले गए जो की हिमाचल प्रदेश का पहाड़ी इलाका है.

नहान से गुरु गोबिन्द सिंह पओंता चले गए जो यमुना तट के दक्षिण सिर्मुर हिमाचल प्रदेश के पास बसा है। वहा उन्होंने पोंटा साहिब गुरुद्वारा स्थापित किया और वे वहाँ सिक्ख मूलो पर उपदेश दिया करते थे.

फिर पोंटा साहिब सिक्खों का एक मुख्य धर्मस्थल बन गया। वहाँ गुरु जी पाठ लिखा करते थे। वे तिन वर्ष वहाँ रहे और उन तीनो सालो में वहा बहुत भक्त आने लगे.

जब गुरु गोबिन्द सिंह 19 वर्ष के थे तब उन्होंने भीम चंड, गर्वल राजा, फ़तेह खान और अन्य सिवालिक पहाड़ के राजाओ से युद्ध किया था। युद्ध पुरे दिन चला और इस युद्ध में हजारो लोगो की जाने गई| जिसमे गुरु गोबिन्द सिंह विजयी हुए.

इस युद्ध का वर्णन “विचित्र नाटक” में किया गया है जोकि दशम ग्रंथ का एक भाग है। गोबिन्द सिंह जी 1688 में आनंदपुर में लौट आए जोकि चक नानकी के नाम से प्रसिद्ध है.

वे बिलासपुर की रानी के बुलाने पर यहाँ आए थे। 1699 में जब सभी सिख धर्म के लोग इक्कट्ठा हुए तब गुरु गोबिंद सिंह ने एक खालसा वाणी स्थापित की “वाहेगुरुजी का खालसा, वाहेगुरुजी की फ़तेह” ऊन्होने अपनी सेना को सिंह नाम दिया.

उन्होंने ही खालसा के मूल सिद्धांतों की भी स्थापना की। दी फाइव के’ ये पांच मूल सिद्धांतों थे जिनका खालसा पालन किया करते थे.

इसमें ब़ाल भी शामिल है जिसका मतलब था बालो को न काटना। कंघा या लकड़ी का कंघा जो स्वछता का प्रतिक है, कडा या लोहे का कड़ा (कंगन जैसा), खालसा के स्वयं के बचाव का, कच्छा अथवा घुटने तक की लंबाई वाला पजामा; यह प्रतिक था। और किरपन जो सिखाता था की हर गरीब की रक्षा चाहे वो किसी भी धर्म या जाती का हो.

औरंगजेब की मृत्यु के बाद मुगलों ने गुरु गोबिन्द सिंह को लंबे समय तक याद नही रखा अगले मुगलों के सम्राट बहादुर शाह पहले मुगल थे जो गुरु गोबिन्द सिंह के मित्र बने.

उन्हें “भारत का संत” नाम दिया। किन्तु बादमे बहादुर शाह नवाब वजीर खान के बहकावे में आकर सिक्खो पर आक्रमण कर दिया। वजीर खान ने दो पठानों जमशेद खान और वासिल बेग से जब गुरु सो रहे थे तब उनके विश्राम कक्ष में उनपे आक्रमण करवाया.

गुरु गोबिंद सिंह जयंती में बस इतना ही| अगर आपको यह लेख पसंद आया होगा तो इसे शेयर जरुर करें और अगर इनके बारे में कुछ जानकारी है तो आप कमेंट बॉक्स में हमारे साथ शेयर कर सकते है. धन्यवाद!

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