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गुरु गोबिंद सिंह जी का जीवन परिचय

गुरु गोबिंद सिंह जी का जीवन परिचय और उनके जीवन से जुड़ी कुछ महत्वपूर्ण बाते

आप सभी का HimanshuGrewal.com पर बहुत बहुत स्वागत है| आज इस लेख के जरिये हम सिख धर्म के दसवे गुरु श्री गुरु गोबिंद सिंह जी की जीवनी की चर्चा करेंगे.

गुरु गोबिन्द सिंह जी सिख धर्म के दसवे और आखिरी गुरु थे, जो मात्र 9 साल की उम्र से ही एक गुरु के रूप में सब के समक्ष आये|

आइये जानते हैं की कैसे एक बच्चा जिसका नाम गोबिंद राय था वो गुरु गोबिन्द सिंह कैसे बना?

History of Guru Gobind Singh Ji in Hindi

गुरु गोबिंद सिंह जी का जन्म : गोबिंद सिंह जी ने 22 दिसम्बर, 1666 को पटना साहिब, बिहार, भारत में जन्म लिया|

जब उनका जन्म हुआ तो उस वक़्त उनके पिता जी बंगाल और असम में धर्म उपदेश देने के लिए गए हुए थे|

जन्म के समय उनका नाम गोबिंद राय रखा गया, वो अपने माता और पिता के इकलौते संतान थे|

जन्म के बाद चार वर्ष तक वो पटना में रहे और अब उनका घर “तख़्त श्री पटना हरिमंदर साहिब” के नाम से जाना जाता है|

जन्म के चार वर्ष बाद 1670 में वे अपने परिवार संग अपने घर पंजाब लौट आये, और दो वर्ष तक वहा रहे|

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फिर जब वे 6 वर्ष के हुए 1972 मार्च में वे चक्क ननकी चले गए जो की हिमालय की निचली घाटी में स्थित है| वहां से उन्होंने अपनी शिक्षा लेनी शुरू की|

चक्क नानकी शहर की स्थापना श्री गोबिंद सिंह के पिता गुरु तेग बहादुर जी ने किया था जिसे आज “आनंदपुर साहिब” के नाम से जाना जाता है|

उस स्थान को उन्होंने गुरु गोबिंद सिंह के जन्म से मात्र एक वर्ष पहले 1665 में उन्होंने बिलासपुर (कहलूर) के शसक से ख़रीदा था|

उनके पिता जी तेग बहादुर जी ने अपनी मृत्यु से पहले ही गुरु गोबिंद जी को अपना उत्तराधिकारी के नाम से घोषित कर दिया था|

बाद में मात्र 9 वर्ष की उम्र में 29 मार्च, 1676 में गोबिंद सिंह 10वें सिख गुरु बन गए|

अब हम जानते हैं की सिख धर्म के दसवे गुरु बनने के बाद गुरु गोबिंद सिंह ने क्या क्या सिखा|

Shri Guru Gobind Singh Ji Essay in Hindi

यमुना नदी के किनारे एक शिविर में रह कर गुरु गोबिंद जी ने-

  • मार्शल आर्ट्स
  • शिकार
  • साहित्य

और कई भाषाएँ जैसे-

  1. संस्कृत
  2. फारसी
  3. मुग़ल
  4. पंजाबी
  5. ब्रज

लगभग 5 नई भाषा सीखीं|

सन् 1684 में उन्होंने एक महाकाव्य कविता भी लिखा जिसका नाम है “वर श्री भगौती जी की”|

यह काव्य हिन्दू माता भगवती/दुर्गा/चंडी और राक्षसों के बिच संघर्ष को दर्शाती है|

गुरु गोबिंद जी नित्य प्रति आनंदपुर साहब में आध्यात्मिक आनंद बाँटते, मानव मात्र में नैतिकता, निडरता तथा आध्यात्मिक जागृति का संदेश देते थे|

यहाँ पर सभी लोग वर्ण, रंग, जाति, संप्रदाय के भेदभाव के बिना समता, समानता एवं समरसता का अलौकिक ज्ञान प्राप्त करते थे|

गोबिंद जी शांति, क्षमा, सहनशीलता की मूर्ति थे, इसके साथ ही गुरुजी की मान्यता थी कि मनुष्य को किसी को डराना भी नहीं चाहिए और न किसी से डरना चाहिए|

वे हमेशा अपनी वाणी में एक उपदेश ज़रूर देते थे की – “भै काहू को देत नहि, नहि भय मानत आन”|

इतना सब कुछ जानने के बाद यह कहना बिलकुल भी गलत नहीं होगा की वे एक महान योद्धा, कवि, भक्त एवं आध्यात्मिक नेता भी थे|

गुरु गोबिंद जी की वाणी में मधुरता, सादगी, सौजन्यता एवं वैराग्य की भावना कूट-कूटकर कर भरी हुई थी|

उनके जीवन का एक प्रथम दर्शन था कि धर्म का मार्ग सत्य का मार्ग है, और सत्य कभी नहीं हारता उसकी सदैव ही विजय होती है|

गुरु गोबिंद सिंह द्वारा महान कार्य

  1. खालसा पंथ के संस्थापक और जाप साहिब
  2. चंडी दी वार, तव – प्रसाद सवैये
  3. ज़फर्नाम
  4. बचित्तर नाटक
  5. अकल उस्तात
  6. सिख चौपाई के लेख|

सन् 1699 में बैसाखी के दिन 14 अप्रैल को उन्होने खालसा पन्थ की स्थापना की जो सिखों के इतिहास की सबसे महत्वपूर्ण घटना मानी जाती है|

गुरू गोबिन्द सिंह जी ने सिखों की पवित्र ग्रन्थ गुरु ग्रंथ साहिब को पूरा किया तथा उन्हें गुरु रूप में सुशोभित भी किया|

उन्होने मुगलों और उनके खास सहयोगियों के साथ 14 युद्ध लड़े, जिसमे उन्होंने अपने दो बेटो को खो दिया|

धर्म के लिए समस्त परिवार का बलिदान उन्होंने किया, जिसके लिए उन्हें “सर्वस्वदानी” भी कहा जाता है|

इसके अलावा आज वे कलगीधर, दशमेश, बाजांवाले आदि और कई नामो, उपनामों और उपाधियों से भी जाने जाते हैं|

गुरु गोबिंद सिंह की जीवनी इन सभी चीजों के अलावा उन्होंने स्वयं ही कई ग्रंथों की रचना भी की| वे विद्वानों के संरक्षक थे|

उनके दरबार में ५२ कवि तथा लेखकों की उपस्थिति हमेशा रहती थी, इस वजह से उन्हें “संत सिपाही” के नाम से भी जाना जाता था| वे भक्ति तथा शक्ति के अद्वितीय संगम थे|

श्री गोबिंद सिंह जी सिख धर्म के संस्थापक के साथ-साथ सिख धर्म को आगे ले जाने में उनका बहुत बड़ा हाथ था|

उन्होंने सैन्य लोकाचार को शुरू किया जिसमें कुछ पुरुष सिखों को हर समय तलवारों को साथ रखने को कहा गया|

गुरु गोबिंद सिंह जी की निजी ज़िन्दगी
पिता का नाम : गुरु तेग बहादुर
माता का नाम : माता गुजरी

गुरु श्री गोबिंद सिंह की तीन पत्निया थी

  1. माता जीतो
  2. माता सुंदरी
  3. माता साहिब देवन

गोबिंद सिंह जी के चार पुत्र थे

  1. अजित सिंह
  2. जुझार सिंह
  3. जोरावर सिंह
  4. फ़तेह सिंह

उत्तराधिकारी गुरु – गुरु ग्रन्थ साहिब

अन्य नाम

  • दसवें सिख गुरु
  • सर्बांस दानी
  • मर्द अगम्द
  • शमेश पिताह
  • बाज’अन

गुरु गोबिंद सिंह जी ने खालसा योद्धा के लिए कुछ खास नियम तैयार किये जैसे-

  • वे कभी भी तंबाकू का उपयोग नहीं कर सकते है|
  • वे कभी बलि दिया हुआ मांस नहीं खा सकते|
  • वे किसी भी मुस्लिम के साथ किसी भी प्रकार का सम्बन्ध नहीं बना सकते हैं|
  • उन लोगों से कभी भी बात ना करें जो उनके उत्तराधिकारी के प्रतिद्वंद्वी हैं|
गुरु गोबिंद सिंग द्वारा किये हुए कुछ मुख्य युद्ध

यह कहा भी जाता है कि गुरु गोबिंद सिंह नें कुल चौदह युद्ध लढाई किया परन्तु कभी भी किसी पूजा के स्थल के लोगों को उन्होंने ना ही बंदी बनाया था ना ही क्षतिग्रस्त किया|

  1. भंगानी का युद्ध : Battle of Bhangani (1688)
  2. नादौन का युद्ध : Battle of Nadaun (1691)
  3. गुलेर का युद्ध : Battle of Guler (1696)
  4. आनंदपुर का पहला युद्ध : First Battle of Anandpur (1700)
  5. अनंस्पुर साहिब का युद्ध : Battle of Anandpur Sahib (1701)
  6. निर्मोहगढ़ का युद्ध : Battle of Nirmohgarh (1702)
  7. बसोली का युद्ध : Battle of Basoli (1702)
  8. आनंदपुर का युद्ध : Battle of Anandpur (1704)
  9. सरसा का युद्ध : Battle of Sarsa (1704)
  10. चमकौर का युद्ध : Battle of Chamkaur (1704)
  11. मुक्तसर का युद्ध : Battle of Muktsar (1705)
गुरु गोबिंद सिंह जी की परिवार के लोगो की मृत्यु

सिरहिन्द के मुस्लिम गवर्नर ने गोबिंद सिंह जी की माता और दो पुत्रो को बंदी बना लिया था|

जब उनके दोनों पुत्रों ने इस्लाम धर्म को कुबूल करने से मना कर दिया तो मुस्लिम गवर्नर ने उन्हें जिन्दा दफना दिया गया|

अपने पोतों के मृत्यु के दुःख को वो सह ना सकी और इसी कारण माता गुजरी भी ज्यादा दिन तक जीवित ना रह सकी और जल्द ही उनकी मृत्यु हो गयी|

ऊपर मैंने आपको बताया ही की मुग़ल सेना के साथ युद्ध करते समय 1704 में उन्होंने अपने दोनों बड़े बेटों भी खो दिए|

गुरु गोबिंद सिंह जी की मृत्यु – Guru Gobind Singh Death History in Hindi

गुरु गोविन्द सिंह जी के सेनापति श्री गुर सोभा के अनुसार गोबिंद सिंह के दिल के ऊपर एक गहरी चोट लग गयी थी|

जिसके कारण 7 अक्टूबर, 1708 को, हजूर साहिब नांदेड़, नांदेड़ में 42 वर्ष की आयु में ही इस दुनिया को छोर कर चले गये|

दोस्तों आज का ये लेख “गुरु गोबिंद सिंह जी की जीवनी” यही समाप्त हो रहा है|

अन्य त्यौहार!

आशा है इस लेख को पढ़ के आपको काफी जानकारी मिली होगी|

आप चाहे तो कमेंट के माध्यम से अपने विचार हमारे साथ प्रकट कर सकते हो| और इस जानकारी को जितना हो सके फेसबुक, ट्विटर, गूगल+ और व्हाट्सएप्प पर शेयर जरुर करे.

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7 Comments

  1. गुरु गोविंद सिंह जी से में बहुत प्रेम करता हु
    क्या वो भी मुझे उनके जैसा बनने में मदद करेंगे

  2. अपने गुरु गोबिंद सिंह जी के ऊपर काफी अच्छा आर्टिकल लिखा है. आपके इस आर्टिकल को हम आपको मित्र में भी शेअर करेंगे.

  3. Your work is thankful to give bright knowledge of Indian great personalty to people. Jisko likhne aur padane wale dono bhagyashali ko punya prapt hota he

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