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स्वामी विवेकानंद की मृत्यु का कारण ?

जानिये आखिर क्या था स्वामी विवेकानंद की मृत्यु का कारण ?

आज के इस लेख में हम युवा संन्यासी स्वामी विवेकानंद की मृत्यु का कारण (रहस्य) जानेंगे, की आखिर कैसे हुई इनकी मृत्यु| क्या है स्वामी विवेकानंद की मौत का सच?

एक युवा संन्यासी के रूप में भारतीय संस्कृति की सुगंध विदेशों में बिखेरनें वाले स्वामी विवेकानंद साहित्य, दर्शन और इतिहास के प्रकाण्ड विव्दान थे.

स्वामी विवेकानंद (Swami Vivekananda) ने ‘योग’, ‘राजयोग’ तथा ‘ज्ञानयोग’ जैसे ग्रंथों की रचना करके युवा जगत को एक नई राह दिखाई है जिसका प्रभाव जनमानस पर युगों-युगों तक छाया रहेगा.

कन्याकुमारी में निर्मित उनका स्मारक आज भी स्वामी विवेकानंद महानता की कहानी कर रहा है.

मित्रों स्वामी विवेकानंद की मृत्यु का रहस्य को जानने से पहले आइये थोड़ी नज़र स्वामी विवेकानन्द की जीवनी पर डालते है.

स्वामी विवेकानंद जी का जीवन परिचय

स्वामी विवेकानंद का जन्म नाम नरेंद्र नाथ दत्त था और यह भारतीय हिंदु सन्यासी थे और 19 वी शताब्दी के संत रामकृष्ण के मुख्य शिष्य थे.

भारत का आध्यात्मिकता से परिपूर्ण दर्शन विदेशो में स्वामी विवेकानंद की वक्तृता के कारण ही पहोचा.

भारत में हिंदु धर्म को बढ़ाने में उनकी मुख्य भूमिका रही और भारत को औपनिवेशक बनाने में उनका मुख्य सहयोग रहा.

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जन्म : 12 जनवरी 1863
जन्म स्थान : कलकत्ता (अब कोलकाता)
पिता : विश्वनाथ दत्त
माता : भुवनेश्वरी देवी
गुरु : श्री रामकृष्ण परमहंस
साहित्यिक कार्य : राज योग, भक्ति योग, कर्म योग इत्यादि
विवेकानंद सुविचार : उठो, जागो और तब तक नहीं रुको जब तक लक्ष्य प्राप्त न हो जाये
विवेकानंद की मृत्यु : 4 जुलाई 1902

उनका जन्म कलकत्ता के बंगाली कायस्थ परिवार में हुआ था| स्वामीजी का ध्यान बचपन से ही आध्यात्मिकता की और था.

उनके गुरु रामकृष्ण का उनपर सबसे ज्यादा प्रभाव पड़ा, जिनसे उन्होंने जीवन जीने का सही उद्देश जाना, स्वयम की आत्मा को जाना और भगवान की सही परिभाषा को जानकर उनकी सेवा की और सतत अपने दिमाग को भगवान के ध्यान में लगाये रखा.

विवेकानंद ने रामकृष्ण मठ और रामकृष्ण मिशन की स्थापना की, जो आज भी भारत में सफलता पूर्वक चल रहा है| उन्हें प्रमुख रूप से उनके भाषण की शुरुवात “मेरे अमेरिकी भाइयो और बहनों” के साथ करने के लिए जाना जाता है। जो शिकागो विश्व धर्म सम्मलेन में उन्होंने हिंदु धर्म की पहचान कराते हुए कहे थे.

अपने गुरु रामकृष्ण की मृत्यु के पश्च्यात, विवेकानंद ने विस्तृत रूप से भारतीय उपमहाद्वीप की यात्रा की और ब्रिटिश कालीन भारत में लोगो की परिस्थितियों को जाना, उसे समझा.

बाद में उन्होंने यूनाइटेड स्टेट की यात्रा जहा उन्होंने 1893 में विश्व धर्म सम्मलेन में भारतीयों के हिंदु धर्म का प्रतिनिधित्व किया.

विवेकानंद ने यूरोप, इंग्लैंड और यूनाइटेड स्टेट में हिन्दू शास्त्र की 100 से भी अधिक सामाजिक और वैयक्तिक क्लासेस ली और भाषण भी दिए.

भारत में विवेकानंद एक देशभक्त संत के नाम से जाने जाते है और उनका जन्मदिन राष्ट्रिय युवा दिन के रूप में मनाया जाता है.

स्वामी विवेकानंद अपनी अध्यात्मिक सोच के साथ पूरी दुनिया को वेदों और शास्त्रों का ज्ञान देकर गए, लेकिन यह जान कर आपको हैरानी होगी की मात्र 40 साल से भी कम उम्र में उनकी मौत हो गई जो आज भी कइयों के लिए एक रहस्य है.

स्वामी विवेकानंद की मृत्यु का कारण ?

कई लोगो के लिए रहस्य इसलिए क्योंकि उनके फॉलोअर्स मानते हैं कि स्वामी जी ने स्व-इच्छा से समाधि लेकर शरीर त्याग किया था, लेकिन वैज्ञानिक आधारों को मानने वाले इस समाधि के कॉन्सेप्ट पर विश्वास नहीं करते.

इतने विकास के बाद भी क्या कोई इन्सान मात्र 39 साल की उम्र में महासमाधि लेगा? आइये जानते है इसके पीछे का पूरा सच-

स्वामी विवेकानंद जीवन के अनजाने सच

विवेकानंद का जन्म 12 जनवरी, 1863 को हुआ था और 4 जुलाई 1902 को मात्र 39 साल की उम्र में महासमाधि धारण कर उन्होंने प्राण त्याग दिए थे.

गंगा नदी के तट पर अंत्येष्टि

गंगा नदी के तट पर जहां 16 साल पहले उनके गुरु रामकृष्ण की अंत्येष्टि हुई थी, वहीं स्वामी जी का भी अंतिम संस्कार किया गया।

वैज्ञानिक आधारों को मानने वालों के अनुसार महासमाधि के समय उन्हें ब्रेन हैमरेज हुआ था जिसके कारण उनकी मृत्यु हुई|

धर्मसभा सम्मेलन और हिंदुत्व में आस्था रखते हुए और इसे वह विश्व की सबसे उन्नत सभ्यता मानते थे जिसमें हर संस्कृति को अपनाने की खूबी है.

उनका मानना था कि किसी भी धर्म में रहते हुए हम उसे ही सर्वश्रेष्ठ मानते हैं, लेकिन ये उसे एक दायरे में बांध देता है और उसके विकास को अवरुद्ध कर करता है.

स्वामी विवेकानन्द बुद्धिज्म के समर्थक थे

विवेकानंद बौद्ध धर्म से भी बहुत प्रभावित थे, लेकिन वो इसे हिंदू धर्म का ही एक हिस्सा और इसका पूरक मानते थे। उनके अनुसार बुद्धिज्म के बिना हिंदुत्व अधूरा है और हिंदुत्व के बिना बुद्धिज्म अधूरा है.

इतना सब कुछ होने के बाद भी आखिर स्वामी विवेकानन्द छोटी आयु में मौत क्यों की है, असल वजह जानते हैं-

मात्र 39 साल की छोटी उम्र में उनका मृत्यु को पाना ना केवल हिंदुत्व के लिए, बल्कि पूरे विश्व के लिए मानवता और योग के विकास की दिशा में एक बड़ा आघात था.

शिकागो सम्मेलन को संबोधित करने के बाद अमेरिका समेत पूरी दुनिया में उनके अनुयायी बन चुके थे और सभी इस छोटी आयु में उनकी मौत का कारण जानना चाहते थे.

बेलूर मठ में मौत

4 जुलाई, 1902 को अपनी मौत के दिन संध्या के समय बेलूर मठ में उन्होंने 3 घंटे तक योग किया.

शाम के 7 बजे अपने कक्ष में जाते हुए उन्होंने किसी से भी उन्हें व्यवधान ना पहुंचाने की बात कही और रात के 9 बजकर 10 मिनट पर उनकी मृत्यु की खबर मठ में फैल गई.

स्वामी विवेकानन्द के मृत्यु के पीछे मेडिकल साइंस ने क्या वजह बताई-

मठकर्मियों के अनुसार उन्होंने महासमाधि ली थी, लेकिन मेडिकल साइंस इस दौरान दिमाग की नसें फटने के कारण उनकी मृत्यु होने की बात मानता है| हालांकि कई इसे सामान्य मृत्यु भी मानते हैं.

स्वामी विवेकानन्द की मौत का सच

उनकी मौत का सच जो भी हो, लेकिन स्वामी विवेकानंद का व्यक्तित्व एक वास्तविकता है| उनकी शिक्षा ना सिर्फ हिदुओं, बल्कि संपूर्ण विश्व को अपने ज्ञान से हमेशा ही सत्कर्म और धर्म का मार्ग प्रशस्त करता रहेगा.

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आशा है की आपको थोड़ी बहुत जानकारी प्राप्त मिली होगी की स्वामी विवेकानंद की मृत्यु का कारण ? अगर आपको यह लेख पसंद आया हो तो इसे शेयर जरुर करें और कमेंट के माध्यम से अपने विचार हमारे साथ प्रकट करें.

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6 Comments

  1. Bahut hi sundr aapne Swami vivekanand G k baare mein btaya…..mene school k time k baad ab jaakr pada h aise lekh….bahut achha lgaa.

  2. उनकी मौत का सच जो भी हो, लेकिन स्वामी विवेकानंद का व्यक्तित्व एक वास्तविकता है| उनकी शिक्षा ना सिर्फ हिदुओं, बल्कि संपूर्ण विश्व को अपने ज्ञान से हमेशा ही सत्कर्म और धर्म का मार्ग प्रशस्त करता रहेगा.

  3. बहुत ही खूबसूरत जानकारी आपने दी धन्यवाद्

  4. किसी भी धर्म में रहते हुए हम उसे ही सर्वश्रेष्ठ मानते हैं, लेकिन ये उसे एक दायरे में बांध देता है और उसके विकास को अवरुद्ध कर करता है.

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