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Goswami Tulsidas Ka Jivan Parichay
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गोस्वामी तुलसीदास का जीवन परिचय संक्षिप्त में

यहां आपको गोस्वामी तुलसीदास का जीवन परिचय (Goswami Tulsidas Ka Jivan Parichay) के बारे में जानने को मिलेगा। आज हम तुलसीदास की जीवनी, तुलसीदास जी की भाषा शैली, तुलसीदास के दोहे और तुलसीदास की रचनाएँ (Tulsidas Ki Rachnaye) के विषय में विस्तार से चर्चा करेंगे।

Goswami Tulsidas Ka Jivan Parichay

Tulsidas Wiki
Tulsidas Biodata
पूरा नाम गोस्वामी तुलसीदास जी
तुलसीदास का जन्म 1511 ई० (संवत- 1568 वि०)
जन्म स्थान सोरों शूकरक्षेत्र, कासगंज , उत्तर प्रदेश, भारत
पिता का नाम आत्माराम जी
माता का नाम हुलसी देवी जी
शिक्षा बचपन से ही वेद, पुराण एवं उपनिषदों की शिक्षा मिली थी।
पत्नी (Tulsidas Wife Name) रत्नावली
बच्चे तारक
धर्म हिन्दू धर्म
प्रसिद्ध कवि और संत
तुलसीदास के गुरु का नाम नरहरिदास
साहित्यिक कार्य रामचरितमानस, हनुमान चालीसा, विनय पत्रिका, दोहावली, कवितावली, वैराग्य संदीपनी, जानकी मंगल, पार्वती मंगल, इत्यादि
तुलसीदास की मृत्यु 1623 ई० (संवत 1680 वि०) वाराणसी

Goswami Tulsidas Biography in Hindi

यह थी थोड़ी बहुत जानकारी संत तुलसीदास जी के ऊपर। अब मैं आपको Goswami Tulsidas Ka Jeevan Parichay विस्तार में बताऊंगा।

नोट: तुलसी दास का जीवनी पढ़ने के बाद आपको बहुत कुछ सीखने को मिलेगा। तुलसीदास के बारे में पढ़ने के बाद आपको क्या सीखने को मिलता है वो बात आप नीचे दिए गए कमेंट बॉक्स में कमेंट करके हमे बता सकते हो।


गोस्वामी तुलसीदास का जीवन परिचय और उनकी रचनाएँ

गोस्वामी तुलसीदास का जीवन परिचय हिन्दी में

Biography of Tulsidas in Hindi

गोस्वामी तुलसीदास पर निबंध: भक्त कवि तुलसीदास का जन्म (Tulsidas ka janm kab hua) वर्ष 1511 ई० में बांदा जिले के यमुना के तट पर स्थित राजापुर गांव में हुआ था। कुछ विद्वान महाकवि तुलसीदास का जन्म सूकर श्रेत्र अथवा सोरों में मनाते हैं। वास्तव में उनके जन्म स्थान व काल के बारे में आज भी विद्वानों में मतैक्य नहीं है। वे सरयू पारायण ब्राह्मण थे।

संत तुलसीदास विद्वान व धर्म के मर्मज्ञ थे। ईश्वर की आराधना उनके जीवन का उद्देश्य था। वे स्वयं एक आदर्श पुरष थे इसलिए उन्होंने अपना आराध्य एक आदर्श पुरुष को ही चुना। भगवान राम उनके आराध्यदेव थे और उनके जीवन के आदर्श थे। प्रभु राम का सम्पूर्ण जीवन एक मर्यादा की डोर में बंधा रहा। संत तुलसीदास जी ने उस महापुरुष को अपना आराध्य बनाया जिसने दूसरों की भलाई में अपना सारा जीवन लगा दिया। वे एक योग्य आज्ञापालक पुत्र, अभिनं हृदय सहयोगी भाई, आदर्श पति और संकट में साथ देने वाले सच्चे मित्र थे।

तुलसीदास जी ने श्री राम के सम्पूर्ण जीवन को इस प्रकार अभिव्यक्त किया जिससे प्रत्येक मानव-मात्र सदा-सदा के लिए जीवन के हर क्षेत्र में प्रेरणा ले सकता है। तुलसीदास में कवि के सभी गुण विद्यमान थे। वे वेदांग, पुराण आदि के मर्मज्ञ थे। उन्होंने अपने जीवन में अनेक ग्रंथों का प्रणयन किया। तुलसीकृत ‘रामचरितमानस हिन्दी साहित्य का एक अनमोल रतन है।

अब तुलसीदास जी हमारे बीच में नही है। तुलसीदास की मृत्यु सन् 1623 ई० (संवत 1680 वि०) (असीघाट) में हुई थी पर फिर भी उनके तुलसीदास जी के दोहे और उनकी तुलसीदास जी की रचनाएं आज भी हम सभी के बीच जीवित है।

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क्या आप जानते हो की हनुमान चालीसा गोस्वामी तुलसीदास जी द्वारा लिखी गई है? अगर आप हनुमान चालीसा पढ़ना चाहते हो तो आप Hanuman Chalisa Goswami Tulsidas वाले लिंक पर क्लिक करके हनुमान चालीसा का पाठ कर सकते हो।


बचपन और प्रारंभिक जीवन: Tulsidas Essay in Hindi

तुलसीदास के जन्म और प्रारंभिक जीवन के बारे में विवरण अस्पष्ट है। तुलसीदास के जन्म के वर्ष के बारे में लोगों के बीच मतभेद है।

तुलसीदास जी की माता का नाम हुलसी और तुलसीदास जी के पिता जी का नाम (Tulsidas ke pita ka naam) आत्माराम दुबे था और कई स्रोतों का दावा है कि तुलसीदास पराशर गोत्र (वंश) के एक सरयूपारीण ब्राह्मण थे, जबकि अन्य कहते हैं कि वे कान्यकुब्ज या सनाढ्य ब्राह्मण थे।

ऐसा माना जाता है कि उनका जन्म राजापुर (चित्रकूट) में हुआ था और उनके जन्म के आसपास कई अनोखी बाते हैं जैसे कि वह (तुलसीदास) 12 महीने के निश्चित समय तक अपनी माँ के गर्भ में थे, जहां एक आम इंसान का बच्चा सिर्फ 9 महीने ही अपने माँ के गर्व में रहता है। जैसा कि आप जानते है कि मनुष्य में उसके दांत जन्मजात नहीं होते हैं, अर्थात दांत जन्म के बाद के 6 महीने से 2 वर्ष तक आते हैं लेकिन उनके मुंह में जन्म के समय ही 32 दांत थे।

आप यह भी जानते होंगे कि जब एक बच्चा जन्म लेता है तो वह रोता है और सबसे महत्वपूर्ण बात कुछ भी नहीं बोलता है लेकिन तुलसीदास जी ने जन्म के समय रोए नहीं थे, बल्कि राम शब्द का उच्चारण किया था। जन्म के समय उन्होंने राम शब्द का उच्चारण किया जिस कारण उनका नाम रामबोला रख दिया गया था।

अक्सर बच्चे के जन्म के कुछ समय बाद पंडित जी से मशवरा किया जाता है और उनसे बच्चे के भविष्य के बारे में उसके नाम के अक्षर इत्यादि के लिए बातचीत की जाती है। ठीक उसी तरह से जब तुलसीदास जी के माता – पिता ज्योतिषियों से मिले तो उनके अनुसार वो एक अशुभ समय में पैदा हुए थे। अशुभ घड़ी में जन्म लेने के साथ – साथ ज्योतिषियों ने उन्हें यह भी बताया कि इस बच्चे को यदि आप साथ रखेंगे तो यकीनन ही आपके साथ कुछ बुरा हो सकता है और इसलिए जब वह छोटा बच्चा था, तभी उसके माता-पिता ने उन्हें छोड़ दिया।

माता – पिता के ठुकराए जाने के बाद उनकी मां के नौकर चुनिया ने तुलसीदास को अपने बच्चे के भांति साथ रखा और उसका पालन पोषण किया। जब तुलसीदास साढ़े पांच साल के हुए तब वो औरत जिसने उनको पाला पोशा था, वो भी चल बसी और तुलसीदास अब अकेले हो गए। उनकी मृत्यु के बाद रामबोला को रामानंद के मठ के आदेश के वैष्णव तपस्वी नरहरिदास द्वारा अपनाया गया था, जिन्होंने उन्हें एक नया नाम दिया जो कि तुलसीदास था।

नरहरिदास ने युवा लड़के को कई बार रामायण सुनाई और लंबे समय तक रामायण सुनते – सुनते तुलसीदास की भक्ति भावना से तुलसीदास जी को सम्पूर्ण रामायण याद हो गई और इसके साथ ही तुलसीदास भगवान राम के अनन्य भक्त बन गए। इसके बाद वे वाराणसी चले गए जहाँ उन्होंने संस्कृत व्याकरण, चार वेदों, छह वेदांगों, ज्योतिष और हिंदू दर्शन के छह स्कूलों का अध्ययन किया, जो साहित्य और दर्शन पर एक प्रसिद्ध विद्वान थे। करीबन 5-16 वर्षों तक उनकी पढ़ाई जारी रही, पढ़ाई को पूरा करने के बाद वे अपने स्थान राजापुर लौट आए।


तुलसीदास के जीवन में मोड़ कब और कैसे आया?

ऊपर हमने जाना की गोस्वामी तुलसीदास के गुरु कौन थे? अथवा Tulsidas ka janam kahan hua tha आइए, अब तुलसीदास के जीवन से जुड़ी कुछ और बातों को जानते हैं।

Tulsidas Ji Ka Jivan Parichay

कुछ स्रोतों के अनुसार ये ज्ञात हुआ कि अपनी शिक्षा को पूर्ण करने के पश्चात उन्होंने एक युवा व्यक्ति के रूप में शादी की और अपनी पत्नी के लिए वो पूरी तरह से समर्पित थे। अर्थात आप ऐसा कह सकते हैं कि वह उनसे अर्थात अपनी पत्नी से इतना जुड़े हुए थे कि वह उनके बिना एक दिन भी नहीं रह सकते थे।

तुलसीदास के बाहर होने पर एक दिन उनकी पत्नी अपने पिता के घर गई थी और फिर जब तुलसीदास घर लौटे और वहाँ अपनी पत्नी को नहीं पाकर वह व्यथित हो गए और अपनी पत्नी से मिलने के लिए रात में यमुना नदी में तैर गए। नदी को पार कर जब वो अपनी पत्नी के पास पहुंचे तो उनकी पत्नी अपने पति को देख परेशान हो गई, वह अपने पति के इस व्यवहार से खिन्न (दुखी) थी और उन्होंने टिप्पणी की कि यदि तुलसीदास भगवान के प्रति समर्पित होते तो वो कितनी खुशनसीब होती।


रत्नावली के इस श्लोक से बदल गया तुलसीदास का जीवन परिचय

अस्थि चर्म मय देह यह, ता सों ऐसी प्रीति।।
नेकु जो होती राम से, तो काहे भव-भीत?

पत्नी के कटु शब्दों ने उनके दिल को छु लिया और फिर उन शब्दों की वजह से तुलसीदास ने तुरंत पारिवारिक जीवन त्याग दिया और एक तपस्वी जीवन अपनाने लगे। फिर उन्होंने भारत भर में संतों से मुलाकात की और ध्यान किया, ऐसा माना जाता है कि उन्होंने बद्रीनाथ, द्वारका, पुरी, रामेश्वरम, और हिमालय का दौरा किया था, हालांकि उन्होंने अपना अधिकांश समय वाराणसी, प्रयाग, अयोध्या और चित्रकूट में बिताया था।

तुलसीदास एक विपुल लेखक थे और उन्होंने कई रचनाओं की रचना की थी, आधुनिक विद्वानों का मानना है कि उन्होंने कम से कम छह प्रमुख किताब और छह छोटी किताब लिखी, जिनमें से सबसे प्रसिद्ध रामचरितमानस है।

Goswami Tulsidas Ki Rachnaye in Hindi

  • Goswami Tulsidas Ji Ki Rachnaye
  • अन्य किताबों में रामलला नहछू
  • बरवै रामायण
  • पार्वती मंगल
  • दोहावली
  • वैराग्य संदीपनी
  • विनय पत्रिका शामिल हैं।
  • भक्तिमय भजन, हनुमान चालीसा भी उनके लिए जिम्मेदार है।

तुलसीदास का हनुमान जी से मेल Tulsidas Jayanti


तुलसीदास ने अपने कई कार्यों में संकेत दिया था कि उनका सामना राम जी के एक भक्त हनुमान से हुआ था। उन्होंने वाराणसी में हनुमान जी को समर्पित संकट मोचन मंदिर की भी स्थापना की थी, जिसके बारे में माना जाता है कि यह उस स्थान पर खड़ा है जहाँ पर हनुमान जी के दर्शन हुए थे। तुलसीदास के अनुसार, हनुमान जी ने उन्हें आशीर्वाद दिया और उन्हें भगवान राम के दर्शन प्राप्त करने के सक्षम बनाया।

तुलसीदास द्वारा लिखित रामचरितमानस में कवि ने स्वप्न और जाग्रत अवस्थाओं में भगवान शिव और माता पार्वती के दर्शन होने का भी उल्लेख किया है।

तुलसीदास द्वारा किया गया मुख्य कार्य


गोस्वामी तुलसीदास का जीवन परिचय की सबसे प्रसिद्ध कृति रामचरितमानस है, जो हिंदी की अवधी बोली में लिखी एक महाकाव्य कविता है जिसमें सात भाग या कांड शामिल हैं। वाल्मीकि रामायण की एक पुनर्विचार को ध्यान में रखते हुए, पाठ को श्रेय दिया जाता है कि राम की कहानी को आम जनता के लिए एक ऐसी भाषा में उपलब्ध कराया जाए जिसे वे संस्कृत संस्करणों के विपरीत आसानी से समझ सकें, जिसे केवल विद्वान ही समझ सकते हैं। रामचरितमानस को पुनर्जागरण की उत्कृष्ट कृति माना जाता है और इसे उच्च-वर्गीय ब्राह्मण संस्कृत के प्रभुत्व के लिए एक चुनौती का प्रतिनिधित्व करने के लिए माना जाता है।

तुलसीदास का निजी जीवन और उनकी विरासत: Tulsidas Information in Hindi


कुछ स्रोतों में कहा गया है कि उनका विवाह भारद्वाज गोत्र के एक ब्राह्मण दीनबंधु पाठक की बेटी रत्नावली से हुआ था। तुलसीदास के बेटे का नाम तारक था जो एक बच्चा के रूप में मर गया। एक बार अपनी पत्नी से गहराई से दिल टूटने के बाद, उन्होंने एक तपस्वी बनने के लिए पारिवारिक जीवन त्याग दिया। हालाँकि कुछ अन्य इतिहासकारों का कहना है कि तुलसीदास बचपन से ही कुंवारे और साधु थे।


तुलसीदास की मृत्यु कब कैसे और कहाँ हुई?

तुलसीदास ने अपने बाद के वर्षों में अस्वस्थता का सामना किया और वर्ष 1623 ई के श्रावण (जुलाई-अगस्त) महीने में उनकी मृत्यु हो गई। इतिहासकार उनकी मृत्यु की सही तारीख के बारे में अलग-अलग राय रखते हैं।

तुलसीदास जी की रचनाएं: Tulsidas Poems in Hindi

⇓ तुलसीदास जी द्वारा लिखित ग्रन्थ (तुलसीदास की कविताएँ) ⇓

  • रामचरितमानस
  • कवितावली
  • संकट मोचन
  • रामललानहछू
  • गीतावली
  • करखा रामायण
  • वैराग्य-संदीपनी
  • श्रीकृष्ण-गीतावली
  • रोला रामायण
  • बरवै रामायण
  • विनय-पत्रिका
  • झूलना
  • पार्वती-मंगल
  • सतसई
  • छप्पय रामायण
  • जानकी-मंगल
  • छंदावली रामायण
  • कवित्त रामायण
  • रामाज्ञाप्रश्न
  • कुंडलिया रामायण
  • कलिधर्माधर्म निरूपण
  • दोहावली
  • राम शलाका
इनमें से तुलसीदास जी की कुछ प्रमुख रचनाएँ हैं जो इस प्रकार है:-
  1. रामचरितमानस
  2. कवितावली
  3. संकट मोचन
  4. गीतावली

तुलसीदास के गुरु कौन थे?

तुलसीदास जी के बहुत सारे गुरु थे जिनसे उन्होंने काफी ज्ञान प्राप्त अर्जित किया है लेकिन अगर तुलसीदास के गुरु का नाम (प्रमुख गुरु) जाने तो भविष्यपुराण के अनुसार, नरसिंह चौधरी और ग्रियसर्न के अनुसार, राघवानंद, विलसन के अनुसार, जगन्नाथ दास, सोरों से प्राप्त तथ्यों के अनुसार नरहरि जी तुलसीदास के गुरु थे।

क्या आप जानते हो नरहरिदास को बहुचर्चित रामबोला मिला और उनका नाम रामबोला से बदल दिया गया। नाम बदलकर उनका नाम तुलसी राम रखा गया तथा उन्हें अयोध्या उत्तर प्रदेश ले आए।

एक बार क्या हुआ तुलसी राम जी ने संस्कार के वक्त बिना किसी कंठस्थ किए उन्होंने गायत्री मंत्र का स्पष्ट उच्चारण किया। ये देख कर वहां उपस्थित सभी लोग आश्चर्यचकित हो गए। तुलसीराम जी काफी तेज दिमाग वाले व्यक्ति थे, अगर वो किसी चीज को एक बार पढ़ या सुन ले तो वो उन्हें तुरंत याद कर लेते थे।


तुलसीदास द्वारा लिखी गई पुस्तक

तुलसीदास जी के ऊपर बहुत सारी पुस्तक लिखी गयी है जैसे:-

  1. Shri Ramcharit Manas – Ramayan
  2. सुंदरकांड
  3. Shri Hanuman Chalisa (हनुमान चालीसा)

इन सभी किताब को आप ऑनलाइन यहाँ पर क्लिक करके Amazon.in से खरीद सकते हो।


तुलसीदास के दोहे अर्थ सहित

"तुलसी देखि सुबेषु भूलहिं मूढ़ न चतुर नर
सुंदर केकिहि पेखु बचन सुधा सम असन अहि।"

अर्थ: गोस्वामी जी कहते है कि सुंदर वेष देखकर न केवल मूर्ख अपितु चतुर मनुष्य भी धोखा खा जाते हैं। सुंदर मोर को ही देख लो उसका वचन तो अमृत के समान है लेकिन आहार साँप का है।

Tulsidas Ke Dohe in Hindi

Tulsidas Ke Dohe in Hindi

दोहा: “दया धर्म का मूल है पाप मूल अभिमान
तुलसी दया न छोडिये जब तक घट में प्राण।"

अर्थ: तुलसीदास जी ने कहा की धर्म दया भावना से उत्पन्न होती और अभिमान तो केवल पाप को ही जन्म देता हैं, मनुष्य के शरीर में जब तक प्राण हैं तब तक दया भावना कभी नहीं छोड़नी चाहिए।

Sant Tulsidas ke dohe in hindi with meaning
दोहे तुलसीदास जी के

तुलसीदास के प्रमुख दोहे और उनका अर्थ

दोहा: "बिना तेज के पुरुष की अवशि अवज्ञा होय
आगि बुझे ज्यों राख की आप छुवै सब कोय।"

अर्थ: तेजहीन व्यक्ति की बात को कोई भी व्यक्ति महत्व नहीं देता है, उसकी आज्ञा का पालन कोई नहीं करता है। ठीक वैसे हीं जैसे, जब राख की आग बुझ जाती है, तो उसे हर कोई छूने लगता है।

गोस्वामी तुलसीदास के दोहे हिंदी में

तुलसीदास के दोहे का अर्थ

सचिव बैद गुरु तीनि जौं….. प्रिय बोलहिं भय आस
राज धर्म तन तीनि….. कर होइ बेगिहीं नास

अर्थ: इस दोहे के माध्यम से तुलसीदास कहते हैं कि जब राज्य में मंत्री, गुरु और वैध अपने निजी स्वार्थ के लिए मीठी-मीठी बातें करते हैं तो इससे निश्चित ही वह राज्य नष्ट होने की दिशा की ओर बढ़ता है।

Tulsidas Dohe in Hindi with Meaning

तुलसी भरोसे राम के…. निर्भय हो के सोए
अनहोनी होनी नही….. होनी हो सो होए

अर्थ: तुलसीदास के अनुसार हमें भय, चिंता के बगैर भगवान पर विश्वास रखते हुए सोना चाहिए। अगर कुछ बुरा होना होगा तो वह होकर ही रहेगा पर उससे पूर्व डर का भाव मन में नहीं होना चाहिए।

तुलसीदास के दोहे और चौपाई

तुलसी नर का क्या बड़ा…. समय बड़ा बलवान
भीलां लूटी गोपियाँ…. वही अर्जुन वही बाण

अर्थ: इस दोहे के माध्यम से तुलसीदास कहना चाहते है कि व्यक्ति नहीं बल्कि उसका समय बलवान होता है। एक समय था जब धनुष चलाने की विद्या में पारंगत धनुर्धर अर्जुन को भीलों द्वारा लूटा गया तो वह गोपियों को भी भीलों से बचा न सका।

Tulsidas Poet in Hindi

सूर समर करनी करहिं….. कहि न जनावहिं आपु
बिद्यमान रन पाइ रिपु….. कायर कथहिं प्रतापु

अर्थ: कायर व्यक्ति जहां अपनी बातों से वीरता प्रकट करते हैं। वही निडर व्यक्ति रणभूमि में दुश्मनों से युद्ध कर अपनी वीरता का परिचय देते हैं।


Tulsidas Ke Guru Kaun The

क्या आप जानते है कि गोस्वामी तुलसीदास के गुरु कौन थे? अगर नहीं, तो अब जान लीजिए।

संत नरहरिदास जी को गोस्वामी तुलसीदास का गुरु माना जाता है। जिनका रिश्ता गुरु शिष्य के अटूट रिश्ते का गवाह है। कम उम्र में ही माता पिता को खो देने वाले तुलसीदास का जीवन अस्त-व्यस्त हो चुका था, दो वक्त के भोजन के लिए वे गांव-गांव भटकते फिरते थे। एक दिन वह नरहरि दास जी के आश्रम में पहुंचे। गुरु की शरण में आने के पश्चात नरहरि दास ने उनकी देखभाल की, उन्हें राम कथा सुनाकर पुरुषोत्तम श्रीराम के आदर्शों और त्याग से परिचित कराया।

उस समय गोस्वामी तुलसीदास की उम्र मात्र 4 वर्ष थी। जब उन्हें गुरु की शिक्षा दीक्षा मिली। यह गुरु का ही मार्गदर्शन था कि भक्ति के मार्ग पर चलकर तुलसीदास को कलयुग में भी भगवान श्री राम और भक्त हनुमान जी के दर्शन हुए और आज उनकी द्वारा लिखी गई रामचरितमानस का सैकड़ों सालों बाद भी अध्ययन होता है।

मान्यता है संत नरहरी दास भगवान शिव के परम भक्त थे महान संतों में गिने जाने वाले संत नरहरिदास की जयंती के दिन आज भी अनेक स्थानों पर उनके चित्र पर पुष्प अर्पित किए जाते हैं।


रामचरितमानस क्या है? वाल्मीकि रामायण और रामचरितमानस में अंतर

रामचरितमानस १६वीं सदी में गोस्वामी तुलसीदास द्वारा रचित सबसे प्रसिद्ध ग्रंथों में से एक है। इसके शीर्षक में रामचरितमानस होने का प्रमुख उद्देश्य जन-जन को यह संदेश देना है कि हम सभी को मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्री राम के महाना चरित्र को हमेशा अपने मस्तिष्क पर सजा कर एक आदर्श जीवन जीना चाहिए।

इस ग्रंथ को सात काण्डों में विभाजित किया गया है। अवधी भाषा में लिखी गई रामचरितमानस को चौपाई मैं तैयार किया गया है। इसमें कुल 4608 चौपाई 1074 दोहे, 27 श्लोक और 86 छंद का वर्णन किया गया है। हालांकि बता दें रामायण और रामचरितमानस दो अलग-अलग भाषाओं में लिखे गए ग्रंथ है। रामायण को जहां संस्कृत में लिखा गया था वही रामचरितमानस अवधि में लिखी गई है।

महर्षि वाल्मीकि ने स्वयं खुद अपनी आंखों देखी घटनाओं का रामायण में उल्लेख किया था। जबकि रामचरितमानस के अध्यायों को लिखने में उन्होंने इसी रामायण की सहायता ली थी और माना जाता है कि स्वयं हनुमान जी ने इस कार्य में तुलसीदास की सहायता की थी। इस प्रकार देखा जाए तो श्लोक, चौपाई, काल, भाषा के आधार पर रामचरितमानस और रामायण में विशेष अंतर देखने को मिलता है। लेकिन कलयुग में लिखी गई रामचरितमानस आज लोगों के बीच अधिक प्रसिद्ध है और प्रभु श्री राम को याद कर भारत के कोने कोने में इसका आज पाठ किया जाता है।


10 Lines on Tulsidas in Hindi

अब हम गोस्वामी तुलसीदास के जीवन से जुड़ी कुछ अनसुनी बातें जानेंगे।

  • श्रीरामचरितमानस समेत अपने जीवन में कुल 12 ग्रंथों के रचनाकार गोस्वामी तुलसीदास के जीवन से जुड़ी अनेक महत्वपूर्ण बातें आज भी लोगों के समक्ष नहीं आई है।
  • ऐसी मान्यता है कि गोस्वामी तुलसीदास को भगवान राम, हनुमान समेत भगवान शिव जी के साक्षात दर्शन प्राप्त हुए थे।
  • तुलसीदास का विवाह जिस रत्नावली नामक महिला के साथ हुआ था वह उससे इतना प्रेम करते थे कि एक बार वह पत्नी के माइके जाने पर खुद भी पीछे पीछे चल दिए।
  • यह देखकर पत्नी ने कहा इसका केवल आधा ध्यान भी यदि तुम ईश्वर की भक्ति में लगा दो तुम्हारा बेड़ा पार हो जाएगा। पत्नी की यह बात सीधे उनके दिल में लगी और वह ग्रस्त त्याग कर भक्ति के मार्ग पर चल दिए।
  • तुलसीदास के बचपन का नाम राम बोला था। दरअसल मान्यता है कि पैदा होते समय गर्भ में ही उनके मुंह में 32 दांत थे। इस दुनिया में आते ही उनके मुंह से निकला गया प्रथम शब्द राम था। अतः उनका नाम राम बोला पड़ गया।

तुलसीदास को गोस्वामी क्यों कहा जाता है?

गोस्वामी शब्द से तात्पर्य इंद्रियों के स्वामी से है। गो अर्थात हमारी इंद्रियां (हमारे नाक कान, आंख, जिह्वा, त्वचा और इन सबसे ऊपर मन) जिस के वशीभूत इंसान बुरे कर्म कुछ भी करने को तैयार रहते हैं। लेकिन क्योंकि तुलसीदास ने अपनी इंद्रियों पर संयम प्राप्त कर एक आध्यात्म की दिशा में एक श्रेष्ठ जीवन जिया। अतः उन्हें इंद्रियों को वश में करने का स्वामी माना गया इसलिए तुलसीदास को गोस्वामी कहा गया।

इस संसार में इंद्रियों के गो के दास तो सभी होते हैं लेकिन ऐसे कुछ ही महापुरुष इस धरती पर जीवन लेते हैं। जो इन इंद्रियों को वशीभूत होकर नहीं बल्कि इन्हें खुद वश में कर जीवन जीते हैं।


तुलसीदास जी को ज्ञान प्राप्त कैसे हुआ?

तुलसीदास जी की जिंदगी के बारे में कुछ प्राचीन पुस्तकों में जानकारी प्राप्त होती है। उन पुस्तकों में यह लिखा गया है कि अपने समय में तुलसीदास जी का स्वभाव बहुत ही चंचल था और रत्नावली नाम की लड़की से जब उनके विवाह को किया गया, तो तुलसीदास जी रत्नावली की सुंदरता से काफी प्रभावित हुए और वह रत्नावली से अत्यधिक प्रेम करने लगे। वह रत्नावली से इतना प्यार करते थे कि वह रत्नावली के बिना एक पल भी नहीं रह पाते थे।

एक बार जब रत्नावली अपने घर पर थी तब तुलसीदास जी उनसे मिलने के लिए चले गए और जब रत्नावली को इस बात का पता चला तो वह काफी नाराज हुई। उन्होंने तुलसीदास जी से नाराजगी जाहिर करते हुए कहा कि जिस मांस से बने हुए शरीर के लिए तुम इतना पागल हो, अगर इसकी जगह पर तुम भगवान की भक्ति में पागल हो जाओ तो कितना उत्तम होता।

पत्नी रत्नावली की यह बात सुनकर तुलसीदास जी को काफी आत्मग्लानि हुई और इसके बाद ही तुलसीदास जी ने वैराग्य धारण कर लिया और इसके बाद वह बनारस में तपस्या करने के लिए निकल पड़े। ऐसा कहा जाता है कि तुलसीदास जी को अपने जीवन काल में श्री राम और हनुमान जी के दर्शन हो गए थे और इसके बाद ही उन्होंने विभिन्न प्रकार की प्रसिद्ध रचनाएं की जिसमें रामचरितमानस भी शामिल है।


तुलसीदास जी ने रामायण कैसे लिखी थी

शास्त्रों के नजरिए से देखा जाए तो तुलसीदास चारों पहर भगवान श्री राम जी की भक्ति में लीन रहते थे। एक दिन जब वह भगवान श्री राम का भजन करके अपने बिस्तर पर जाकर सो रहे थे, तभी उन्हें सपना आया और सपने में उन्हें भगवान शंकर ने दर्शन दिए। भगवान शंकर ने तुलसीदास जी से कहा था कि तुम्हें भगवान श्रीराम पर एक महाकाव्य की रचना करनी है। इतना कहने के बाद भगवान शंकर अंतर्ध्यान हो गए और तुरंत ही तुलसीदास जी की नींद भी टूट गई। इसके बाद तुलसीदास जी अयोध्या चले आए और अयोध्या पहुंचने के बाद तुलसीदास जी ने रामचरितमानस की रचना करना चालू किया। उस दिन विक्रम संवत् 1631 की रामनवमी थी।

बता दें कि रामचरितमानस की रचना करने में तुलसीदास को 2 साल 7 महीने और 26 दिन का समय लगा था और उन्होंने इसकी रचना संवत 1633 के मार्गशीर्ष शुक्ल पक्ष में राम जी भगवान की विवाह के दिन पूरी की थी।  रामचरितमानस में कुल सात कांड है जोकि अवधी भाषा में है। इन सात कांड के नाम बालकांड, अयोध्याकांड, अरण्यकांड, किष्किंधा कांड, सुंदर कांड, लंका कांड और उत्तरकांड है।

तुलसीदास जी की काव्य भाषा की विशेषता क्या है

वैसे तो तुलसीदास जी ने विभिन्न प्रकार के ग्रंथों की रचना की थी परंतु गोस्वामी तुलसीदास जी का सबसे प्रसिद्ध ग्रंथ रामचरितमानस है जिसकी रचना इन्होंने अवधी भाषा में की थी। इस प्रकार तुलसीदास जी ने अपनी अधिकतर रचनाओं को करने के लिए अवधी भाषा का ही इस्तेमाल किया था। बता दे की अवधि भाषा हिंदी भाषा की ही उपभाषा है जिसका सबसे अधिक इस्तेमाल उत्तर प्रदेश के रायबरेली, प्रतापगढ़, सुल्तानपुर, अमेठी, प्रयागराज, अयोध्या जैसे इलाकों में किया जाता है।

तुलसीदास जी का रामबोला नाम कैसे पड़ा?

ऐसा कहा जाता है कि जब तुलसीदास जी 12 महीने के हो गए थे तब भी वह धरती पर पैदा नहीं हुए थे बल्कि 12 महीने की अवस्था में भी वह अपनी मां के पेट में ही थे और जब तुलसीदास जी पैदा हुए थे तब इनके मुंह में 32 दांत थे और इनके पैदा होने के दरमियान यह रोए भी नहीं थे बल्कि इनके मुंह से राम शब्द निकला था। इसलिए इन्हें रामबोला नाम दिया गया था।

तुलसीदास जी के पैदा हो जाने के बाद कुछ प्रसिद्ध ज्योतिषी ने तुलसीदास जी के ऊपर कुछ बातें कही थी जिसके अनुसार तुलसीदास जी का जन्म अशुभ समय में हुआ था और इसी की वजह से तुलसीदास जी अपने माता पिता के लिए संकट लेकर के आए हैं। इसके कुछ ही दिनों के बाद तुलसीदास जी की माता हुलसी का निधन हो गया और उसके थोड़े दिनों के बाद इनके पिताजी की भी मौत हो गई और इस प्रकार से तुलसीदास जी अनाथ हो गए।

तुलसीदास जी के माता पिता की मृत्यु हो जाने के बाद तुलसीदास की सारी जिम्मेदारी चुनिया नाम की दासी ने संभाली थी और वह तुलसीदास का अपने बच्चे की तरह ही पूरा पालन पोषण करती थी। परंतु जब तुलसीदास जी साढे 5 साल की उम्र के थे तभी चुनिया दासी की भी मौत हो गई और जब तुलसीदास जी बिल्कुल अकेले रह गए, तब नरहरी दास जी ने तुलसीदास जी को अपनाया। बता दें कि नरहरी दास जी रामानंद के मठ वासी आदेश पर वैष्णव की तपस्या करने वाले एक व्यक्ति थे। इन्होंने ही राम बोला को तुलसीदास नाम लिया था।


तुलसीदास का जीवन परिचय का यह लेख अब यही पर खत्म हुआ और मुझे पूरा यकीन है कि इस लेख में आपको वो पूरी जानकारी मिली होगी जो आपको चाहिए होगी। अगर आपको अभी भी तुलसीदास का जीवन परिचय के विषय में कुछ पूछना है या फिर आपको लगता है की इस लेख में हमने कुछ गलत लिखा है तो आप कमेंट करके हमको जरूर बताये और इस लेख को अपने मित्रों के साथ सोशल मीडिया पर शेयर करें। धन्यवाद! Goswami Tulsidas Ka Jivan Parichay

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34 Comments

  1. हिमांशु जी आपने बहुत अच्छी प्रस्तुति दी है। धन्यवाद।

    1. Himanshu ji tulsidas ji ke janm or mratuu ke vishya me Doha bhi praclit hai Apne wo Doha kuu nhi Likha, or inke guru ka naam bhi nhi Likha apne

  2. इसमें इनकी जन्म की तारीख गलत है इनका जन्म 1554 विक्रम संवत में हुआ था

    1. विकिपीडिया के अनुसार इनका जन्म 1511 ई० (सम्वत्- 1568 वि०) सोरों शूकरक्षेत्र, कासगंज , उत्तर प्रदेश, भारत में हुआ|

  3. अति सुंदर प्रस्तुती।लव यु जी

  4. हिमांशु जी बहुत ही बढ़िया तरीके से आपने तुलसीदास जी के बारे में लिखा है

  5. आप ने जो बाते हम तक पहुचाने का प्रयास किया
    उस बात से हमे शिक्षा के क्षेत्र मे बिना सोचे समझे जवाब देने का अवसर मिलता है।
    हम आपके व्दारा बताई गई बातो से बहुत प्राभावित हूॅ ।
    आपका कोटि कोटि धन्यवाद

  6. इस ब्लाग के शुरू शुरू में एक जगह “निबन्द” लिखा है, शायद “निबन्ध” होना चाहिये। वैसे ब्लाग काफ़ी ज्ञानवर्धक है। शुक्रिया।

  7. पूरा नाम गोस्वामी तुलसीदास जी
    तुलसीदास का जन्म 1511 ई० (सम्वत्- 1568 वि०)
    जन्म स्थान राजापुर, चित्रकूट – उत्तर प्रदेश
    पिता का नाम आत्माराम दुबे
    माता का नाम हुलसी
    शिक्षा बचपन से ही वेद, पुराण एवं उपनिषदों की शिक्षा मिली थी

  8. नमे से तुलसीदास जी की कुक प्रमुख रचनाएँ हैं जो इस प्रकार है:-

    रामचरितमानस
    कवितावली
    संकट मोचन
    गीतावली
    तुलसीदास के गुरु कौन थे ? Information About Tulsidas in Hindi
    तुलसीदास जी के बहुत सारे गुरु थे जिनसे उन्होंने काफी ज्ञान प्राप्त अर्जित किया है| लेकिन अगर तुलसीदास के गुरु का नाम (प्रमुख गुरु) जाने तो भविष्यपुराण के अनुसार, नरसिंह चौधरी और ग्रियसर्न के अनुसार, राघवानंद, विलसन के अनुसार, जगन्नाथ दास, सोरों से प्राप्त तथ्यों के अनुसार नरहरि जी तुलसीदास के गुरु थे|

    क्या आप जानते हो नर हरिदास को बहुचर्चित रामबोला मिला और उनका नाम रामबोला से बदल दिया गया| नाम बदलकर उनका नाम तुलसी राम रखा गया तथा उन्हें अयोध्या उत्तर प्रदेश ले आए|

    एक बार क्या हुआ तुलसी राम जी ने संस्कार के वक्त बिना किसी कंठस्थ किए उन्होंने गायत्री मंत्र का स्पष्ट उच्चारण किया| ये देख कर वहा उपस्थित सभी लोग आश्चर्यचकित हो गए|

    तुलसीराम जी काफी तेज दिमाग वाले व्यक्ति थे, अगर वो किसी चीज को एक बार पढ़ या

  9. आपके बेवसाईट पर दी गई जानकारी बहुत ही महत्व पूर्ण एवं उपयोगी हैं

  10. हिमांशु जी बहुत ही बढ़िया तरीके से आपने तुलसीदास जी के बारे में लिखा है. हमें बहुत ही पसंद आया।

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