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यीशु मसीह कौन है

यीशु मसीह कौन है परमेश्‍वर या आम इंसान? बाइबल सिखाती है

आज के लेख में आपको ईसाई धर्म के गुरु यीशु मसीह जी के बारे में विख्यात में जानने को मिलेगा| आइए जानते हैं यीशु मसीह कौन है और यीशु जी के एक गरीब बढ़ई के बेटे के रूप में जन्म लेने से ईश्वर बनने तक के सफर को:-

यीशु मसीह कौन है – ईसा मसीह कौन थे ?

ईसाई लोग के अनुसार यीशु मसीह परमपिता परमेश्वर के पुत्र और ईसाई त्रिएक परमेश्वर के तृतीय सदस्य माने जाते हैं|

ईसा के जीवन और उनके द्वारा दिये गए उपदेश (ईसा मसीह के उपदेश) ईसाई धर्म की नामी किताब – बाइबिल के नये नियम में दिये गये हैं.

यीशु मसीह को इस्लाम धर्म के अनुसार ईसा कहा जाता है, और उन्हें इस्लाम के भी महानतम पैग़म्बरों में से एक माना जाता है, तथा कुरान में उनका जिक्र भी है.

जरुर पढ़े ⇓

यीशु मसीह का जन्म – यीशु मसीह का जीवन परिचय

बाइबिल के अनुसार यीशु की माँ विवाह से पहले ही ईश्वरीय प्रभाव से गर्भवती हो गई थी, ईश्वर की ओर से संकेत पाने के बाद उनका विवाह यूसुफ नामक बढ़ई से हुआ.

ईसा ने अपने पिता यूसुफ का पेशा (यानि बढ़ई का काम) सीख लिया और लगभग 30 साल की उम्र तक वे बढ़ई का काम करते रहे.

बाइबिल (इंजील) में उनके 13 से 29 वर्षों के बीच का कोई जिक्र नहीं मिलता, 30 वर्ष की उम्र में उन्होंने यूहन्ना (जॉन) से पानी में डुबकी (दीक्षा) ली.

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डुबकी के बाद ईसा पर पवित्र आत्मा आई| 40 दिन के उपवास के बाद ईसा लोगों को शिक्षा देने लगे.

आइए अब यीशु मसीह के द्वारा दिये गए उपदेश प्रचार को पढ़ कर समझते हैं और दोस्तों यदि हो सके तो आप उसे अपनी निजी ज़िंदगी में फॉलो भी कर सकते हैं| तो चलिये जानते हैं उनके उपदेश-

यीशु मसीह के उपवास – यीशु मसीह कौन है

तीस साल की उम्र में ईसा ने इजराइल की जनता के साथ यहूदी धर्म का एक नया रूप प्रचारित करना शुरु कर दिया| उन्होंने कहा कि ईश्वर (जो केवल एक ही है) साक्षात प्रेमरूप है और उस वक्त के वर्त्तमान यहूदी धर्म की पशु बलि और कर्मकाण्ड नहीं चाहता.

यहूदी ईश्वर की परम प्रिय नस्ल नहीं है, ईश्वर सभी मुल्कों को प्यार करता है| इंसान को क्रोध में बदला नहीं लेना चाहिए और क्षमा करना सीखना चाहिए.

यीशु ने स्पष्ट रूप से कहा कि वे ही ईश्वर के पुत्र हैं, वे ही मसीह हैं और स्वर्ग और मुक्ति का मार्ग हैं.

यहूदी धर्म में कयामत के दिन का कोई खास जिक्र या महत्त्व नहीं था, पर ईसा ने कयामत के दिन पर खास जोर दिया – क्योंकि उसी वक़्त स्वर्ग या नर्क इंसानी आत्मा को मिलेगा| ईसा ने कई चमत्कार भी किए.

इतिहास ⇓

यीशु मसीह के चमत्कार की कहानी – यीशु मसीह का इतिहास

1. मन फिराओ और सुसमाचार पर विश्वास करो| मार्ग जीवन और सच्चाई मैं हूँ| बिना मेरे द्वारा कोई परमेश्वर पिता के पास नहीं पहुच सकता|

2. यदि तुमने मुझे जाना होता, तो मेरे पिता को भी जानते, और अब उसे जानते हो, और उसे देखा भी है| जिसने मुझे देखा है उसने पिता को देखा है|

3. मैं पिता में हूँ, और पिता मुझ में है, ये जो बाते मैं तुम से कहता हूँ, अपनी और से नहीं कहता परंतु पिता मुझ में रहकर अपने काम करता है|

4. मैं प्रथम, अंतिम और जीता हूँ, मैं मर गया था और देख अब युगानुयुग जीवता हूँ; और मृत्यु और अधोलोक की कुंजी मेरे ही पास है|

5. जीवन की रोटी मैं हूँ जो मेरे पास आएगा वह कभी भूखा न होगा और जो मुझ पर विश्वास करेगा, वह कभी प्यासा न होगा|

6. यदि तू परमेश्वर के वरदान को जानती, और यह भी जानती कि वह कौन है जो तुझ से कहता है; मुझे पानी पीला तो तू उस से मांगती, और वह तुझे जीवन का जल देता|

7. जो कोई उस जल में से पिएगा जो मैं उसे दूंगा, वह फिर अनंतकाल तक प्यासा न होगा: वर्ण जो जल मैं उसे दूंगा, वह उस में एक सोता बन जाएगा जो अनंत जीवन के लिए उमड़ता रहेगा.

8. पिता मुझसे इसलिए प्रेम रखता है, कि मैं अपने प्राण देता हूँ, कि उसे फिर ले लूँ| कोई उसे मुझ से छिनता नहीं, वर्ण मई उसे आप ही देता हूँ: मुझे उसके देने का अधिकार है, और उसे फिर लेने का भी अधिकार है, यह आज्ञा मेरे पिता से मुझे मिली है|

9. मेरे पिता ने मुझे सब कुछ सौंपा है, और कोई पुत्र को नहीं जानता, केवल पिता; और कोई पिता को नहीं जनता, केवल पुत्र और वह जिस पर पुत्र उसे प्रगट करना चाहे|

10. हे सब परिश्रम करने वालों और बोझ से दबे लोगो, मेरे पास आओ; मैं तुम्हें विश्वास दूंगा| मेरा जुआ अपने ऊपर उठा लो; और मुझ से सीखो; क्यूंकी मैं नम्र और मन में दीन हूँ: और तुम अपने मन मे विश्वास पाओगे| क्यूंकी मेरा जुआ सहज और मेरा बोझा हल्का है|

11. धन्य हैं वे, जो मन के दीन हैं, क्यूंकी स्वर्ग का राज्य उन्ही का है|

12. धन्य हैं वे, जो शोख करते हैं, क्यूंकी वे शांति पाएंगे|

13. धन्य हैं वे, जो नम्र हैं, क्यूंकी वे पृथ्वी के अधिकारी होंगे|

14. धन्य हैं वे जो धर्म के भूखे और प्यासे हैं, क्यूंकी वे तृप्त किए जाएंगे|

15. धन्य हैं वे, जो दयावन्त हैं, क्यूकी उन पर दया की जाएगी|

16. धन्य हैं वे, जिन के मन श्रद्धा है, क्यूंकी वे परमेश्वर को देखेंगे|

17. धन्य हैं वे, जो मेल करवाने वाले हैं, क्यूंकी वे परमेश्वर के पुत्र कहलाएंगे|

18. धन्य हैं वे, जो धर्म के कारण सताए जाते हैं, क्यूंकी स्वर्ग का राज्य उन्ही का है|

19. धन्य हैं वे, हो तुम, जब मनुष्य मेरे कारण तुम्हारी निंदा करे, और सताए और झूठ बोल बोलकर तुम्हारे विरुद्ध में जा कर सारी बाते कहे|

20. आनंदित और मगन होना क्यूंकी तुम्हारे लिए स्वर्ग में बड़ा फल है इसलिए कि उन्होने उन भविष्य देवताओ को जो तुम से पहले थे इसी रीति से सताया था|

21. जब मनुष्य का पुत्र अपनी महिमा में आएगा, और सब स्वर्ग दूत उसके साथ आएंगे तो वह अपनी महिमा के सिंहासन पर विराजमान होगा और सब जातियाँ उसके सामने इकटठी हो जाएगी; और जैसा चरवाहा भेड़ो को बकरियों से अलग कर देता है, वैसा ही वह उन्हे एक दूसरे से अलग करेगा|

तो दोस्तों ये थे कुछ उपदेश जो यीशु मसीह द्वारा दिया गया है| यकीनन ही इसको पढ़ कर आपके मन को शांति भी जरूर मिली होगी, यदि आप इसको अपने जीवन में फॉलो करना शुरू करेंगे तो आपकी जिन्दगी भी काफी अच्छी चलेगी|

दोस्तो क्या आप जानते हैं कि यीशु मसीह को 40 कोड़े मारे गए थे| यदि नहीं जानते तो आप नीचे दी गई लाइन को ध्यान से पढ़िये और जानिए कि यीशु मसीह को 40 कोड़े मारने का पीछे का रहस्य क्या है? और इसके साथ ही जानते हैं प्रभु यीशु मसीह को क्रूस पर मारने वाले लोग कौन थे?

ईसा मसीह को क्यों मारा गया और किसने चढ़ाया था – Yeshu Masih Essay in Hindi

यहूदियों के कट्टरपन्थी रब्बियों (दूसरे धर्मगुरुओं) ने ईसा का भारी विरोध किया, उन्हें ईसा में मसीहा जैसा कुछ ख़ास नहीं लगा क्यूंकी उन्हें अपने कर्मकाण्डों से प्रेम था और उनके अनुसार खुद को ईश्वर पुत्र बताना उनके लिये भारी पाप था|

इसलिये उन्होंने उस वक्त के रोमन गवर्नर पिलातुस को इस बात की शिकायत की, रोमनों को हमेशा यहूदी क्रान्ति का डर लगा रहता था इसलिये कट्टरपन्थियों के डर की वजह से और उनको प्रसन्न करने के लिए पिलातुस ने ईसा को क्रूस (सलीब) पर मौत की दर्दनाक सज़ा सुनाई.

बाइबल के मुताबिक़ बताया गया है कि रोमी सैनिकों ने ईसा को कोड़ों से मारा| उन्हें शाही कपड़े पहनाए, उनके सर पर कांटों का ताज सजाया और उनपर थूका और ऐसे उन्हें तौहीन में “यहूदियों का बादशाह” बनाया.

पीठ पर अपना ही क्रूस उठाकर, रोमियो ने उन्हें गल्गो तक लिया, जहां पर उन्हें क्रूस पर लटकाना था| गल्गो पहुंचने पर, उन्हें मदिरा और पित्त का मिश्रण पेश किया गया था.

उस युग में यह मिश्रण मृत्युदंड की अत्यंत दर्द को कम करने के लिए दिया जाता था| ईसा ने उसे पीने से इंकार कर दिया था| इतना ही नहीं दोस्तों बाइबल के मुताबिक, ईसा को क्रूस पर भी लटकाया गया था.

ईसाइयों का मानना है कि क्रूस पर मरते समय ईसा मसीह ने सभी इंसानों के पाप स्वयं पर ले लिए थे और इसलिए जो भी ईसा में विश्वास करेगा, उसे ही स्वर्ग मिलेगा.

मृत्यु के तीन दिन बाद ईसा वापिस जी उठे और 40 दिन बाद सीधे स्वर्ग चले गए| ईसा के 12 शिष्यों ने उनके नये धर्म को सभी जगह फैलाया| बाद में यही धर्म ईसाई धर्म के नाम से चर्चित हो गया.

दोस्तों इस लेख में इतना ही, यदि आपको यीशु मसीह कौन है और उनकी महानता पसंद आई हो तो इसे खुल कर अपने मित्रों के साथ सोशल मीडिया के माध्यम से शेयर जरूर करे.

अगर आपके मन में कोई प्रश्न के तो आप नीचे दिए गये कमेंट बॉक्स में जाकर अपना प्रश्न पूछ सकते है.

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